# वित्तीय वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही में क्या कहते हैं पेटीएम के आंकड़े?
RBI ने स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी शुरू की, जानिए क्या है इसका मतलब
बैंकिंग सिस्टम में जरूरत से ज्यादा लिक्विडिटी को कम करने के लिए एसडीएफ शुरू की गई है। इस फैसिलिटी के तहत बैंकों को अपना अतिरिक्त फंड आरबीआई के पास डिपॉजिट करने के लिए कोलैटरल की जरूरत नहीं पड़ेगी।
RBI ने शुक्रवार को स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (SDF) शुरू करने का ऐलान किया। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की बैठक के बाद इसका ऐलान किया। क्या है स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसलिली, इसे क्यों शुरू किया गया है, इसके क्या फायदे हैं? आइए इन सवालों के जवाब जानते हैं।
क्या है एसडीएफ?
शक्तिकांत दास ने कहा कि केंद्रीय बैंक ने स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी शुरू की है। बैंकिंग सिस्टम में कई बार जरूरत से ज्यादा लिक्विडिटी हो जाती है। इससे कई तरह की प्रॉब्लम होती है। बैंकिंग सिस्टम में जरूरत से ज्यादा लिक्विडिटी को कम करने के लिए एसडीएफ शुरू की गई है। इस फैसिलिटी के तहत बैंकों को अपना अतिरिक्त फंड आरबीआई के पास डिपॉजिट करने के लिए कोलैटरल की जरूरत नहीं पड़ेगी।
Paytm Share Buyback: पेटीएम शेयरों के बायबैक पर फैसले के लिए बोर्ड की बैठक आज, हो सकता है बड़ा फैसला
अपने आईपीओ के फ्लाॅप होने के लगभग एक वर्ष बाद पेटीएम की पैरेंट कंपनी वन 97 कम्युनिकेशंस शेयर बायबैक करने की योजना बना रही है। कंपनी की ओर से जानकारी दी गई थी कि आज यानी (13 दिसंबर) को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की बैठक में शेयर बायबैक के मसले पर विचार-विमर्श किया जाएगा। बता दें कि शेयर बाजार में पेटीएम के शेयरों की लिस्टिंग डिस्काउंट के साथ हुई थी। अब तक कंपनी के शेयर 70 प्रतिशत तक टूट चुके हैं। आपको बता दें कि कंपनी के पास फिलहाल करीब 9,182 करोड़ रुपये की लिक्विडिटी है।
# पेटीएम ने शेयर बाजार को दी जानकारी
विस्तार
अपने आईपीओ के फ्लाॅप होने के लगभग एक वर्ष बाद पेटीएम की पैरेंट लिक्विडिटी क्या है? कंपनी वन 97 कम्युनिकेशंस शेयर बायबैक करने की योजना बना रही है। कंपनी की ओर से जानकारी दी गई थी कि आज यानी (13 दिसंबर) को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की बैठक में शेयर बायबैक के मसले पर विचार-विमर्श किया जाएगा। बता दें कि शेयर बाजार में पेटीएम के शेयरों की लिस्टिंग डिस्काउंट के साथ हुई थी। अब तक कंपनी के शेयर 70 प्रतिशत तक टूट चुके हैं। आपको बता दें कि कंपनी के पास फिलहाल करीब 9,182 करोड़ रुपये की लिक्विडिटी है।
# पेटीएम ने शेयर बाजार को दी जानकारी
पेटीएम की पैरेंट कंपनी की ओर से शेयर बाजार को बताया गया है कि वह अपने इक्विटी शेयरों के बायबैक के प्रस्ताव पर विचार करेगी। वन 97 कम्युनिकेशंस के मुताबिक मैनेजमेंट का मानना है कि कंपनी की मौजूदा लिक्विडिटी/वित्तीय स्थिति को देखते हुए बायबैक हमारे शेयरधारकों के लिए फायदे का सौदा हो सकता है। बाजार के जानकारों के मुताबिक पेटीएम का बायबैक साइज 800 करोड़ रुपये से 1,000 करोड़ रुपये के बीच हो सकता है।
भारत के बैंकिंग सिस्टम में 40 महीने बाद फिर बढ़ा नकदी संकट, आरबीआई ने उठाया ये कदम
नई दिल्ली : भारत में लगातार बढ़ रही महंगाई पर लगाम कसने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से किए गए सख्त फैसलों के करीब 40 महीनों में पहली बार बैंकिंग सिस्टम में नकदी की कमी हो गई है. आलम यह कि बैंकिंग सिस्टम में नकदी की कमी आने के बाद खुद आरबीआई ने ही मंगलवार 20 सितंबर 2022 को करीब 2.73 अरब डॉलर यानि 21,800 करोड़ रुपये डालने पड़े हैं. मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, मई 2019 के बाद पहली बार बैंकिंग सिस्टम में नकदी की कमी आई है.
बैंकिंग सिस्टम की नकदी में 90,000 करोड़ की कमी
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, महंगाई पर काबू करने के लिए आरबीआई ने 4 मई 2022 को मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) बढ़ाने का फैसला किया था. बैंकिंग सिस्टम में मौजूद अतिरिक्त नकदी को कम करने के मकसद से आरबीआई नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में 50 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी कर इसे 4 फीसदी से बढ़ाकर 4.50 फीसदी कर दिया. सीआरआर में बढ़ोतरी का फैसला 21 मई, 2022 से लागू हुआ था. इससे बैंकिंग सिस्टम में मौजूद 90,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी में कमी आ गई.
बता दें कि भारत में लगातार बढ़ रही महंगाई पर काबू करने के लिए आरबीआई ने अप्रैल महीने से अब तक नीतिगत ब्याज दर रेपो रेट में करीब 1.40 फीसदी अथवा 140 बेसिस प्वाइंट तक बढ़ोतरी की है. इसके पीछे आरबीआई का तर्क यह था कि बाजार में नकदी की अधिकता के कारण भारत में महंगाई बढ़ रही है. उसका कहना है कि जब देश में कर्ज महंगा होगा, तो लोगों के खर्चे में कटौती होगी और बाजार में नकदी के प्रवाह में कमी आएगी. यही कारण है कि बैंकों के पास मौजूदा नकदी को रोकने के लिए आरबीआई ने सीआरआर में 50 बेसिस प्वाइंट बढ़ाने का फैसला किया था.
LCR की सीमाएं
LCR की एक सीमा यह है कि इसके लिए बैंकों को अधिक नकदी रखने की लिक्विडिटी क्या है? आवश्यकता होती है और इससे उपभोक्ताओं और व्यवसायों को कम ऋण दिए जा सकते हैं।
कोई यह तर्क दे सकता है कि यदि बैंक कम संख्या में ऋण जारी करते हैं, तो यह धीमी आर्थिक वृद्धि का कारण बन सकता है क्योंकि कंपनियों को अपने संचालन और विस्तार के लिए ऋण की आवश्यकता होती है और पूंजी तक पहुंच नहीं होती।
दूसरी ओर, एक और सीमा यह है कि हम अगले वित्तीय संकट तक नहीं जान पाएंगे यदि LCR बैंकों के लिए पर्याप्त वित्तीय तकिया प्रदान करता है या यदि यह 30 दिनों के लिए नकद बहिर्वाह निधि के लिए लिक्विडिटी क्या है? अपर्याप्त है। LCR एक तनाव परीक्षण है जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अल्पकालिक तरलता व्यवधान के दौरान वित्तीय संस्थानों के पास पर्याप्त पूंजी हो।
अब गांव के इन बैंकों में भी पैसा जमा कर पाएं सेविंग खाते से ज्यादा ब्याज, RBI ने किया बड़ा ऐलान
कोरोना संकट के बीच आम लोगों से लेकर छोटे कारोबारियों तक को राहत देने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) ने कई तरह के उपायों का ऐलान किया है. तीन दिन तक चले मौद्रिक नीति बैठक (Monetary policy meeting) के बाद आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) ने कहा कि मौजूदा हालात, मैक्रोइकोनॉमिक स्थिति और फाइनेंशियल मार्केट को देखते हुए कई तरह के उपायों का ऐलान किया जा रहा है. बता दें कि आरबीआई ने इस बार नीतिगत ब्याज दरों (Policy Rates) में कोई बदलाव नहीं किया है. साथ ही अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण को भी उदार बनाये रखने का फैसला किया है.
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक जारी कर सकेंगे सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट
अब आरबीआई ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट भी जारी करने की अनुमति दे दी है. इसके अलावा आरबीआई ने यह भी कहा है कि अब सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट के सभी जारीकर्ता को मैच्योरिटी से पहले बायबैक की सुविधा भी मिलेगी. हालांकि, इसके लिए कुछ शर्तें भी होंगी. आरबीआई का कहना है कि इससे लिक्विडिटी मैनेजमेंट में सहूलियत मिल सकेगी.
सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट एक तरह का मनी मार्केट (Money Market) इंस्ट्रूमेंट है. जब कोई निवेशक किसी बैंक में एक तय अवधि के लिए इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में फंड जमा करता है तो उन्हें सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट जारी किया जाता है. यह आरबीआई के नियमों के तहत रेगुलेट होता है.
आसान भाषा में समझें तो सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट बैंक और डिपॉजिटर के बीच एक तरह की सहमति होती है, जिसमें एक तय अवधि के लिए पहले से तय फंड को फिक्स किया जाता है. अब तक फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (FDIC) द्वारा जारी किया जाता रहा है. लेकिन रीजनल रूरल बैंक भी इसे जारी कर सकेंगे.
कितनी होती है सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट की अवधि
आरबीआई के नियमों के तहत कोई भी बैंक या वित्तीय संस्थान सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट नहीं जारी कर सकता है. इसके लिए आरबीआई की कुछ शर्तें होती हैं. कॉमर्शियल बैंकों द्वारा जारी होने वाला सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट 7 दिन से लेकर 1 साल तक के लिए होता है, जबकि वित्तीय संस्थान इसे 1 साल से लेकर 3 साल तक की अवधि के जारी कर सकते हैं. इसे कम से कम 1 लाख रुपये तक के लिए जारी किया जा सकता है.
चूंकि यह सरकारी गारंटी वाली सिक्योरिटीज होती है, इसीलिए निवेशक की मूल रकम सुरक्षित रहती है. सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट को स्टॉक्स या बॉन्ड्स की तुलना में कम जोखिम वाला निवेश विकल्प माना जाता है. सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट को लेकर माना जाता है कि इसपर पारंपरिक सेविंग्स अकाउंट की तुलना में ज्यादा रिटर्न मिलता है. मैच्योरिटी के समय पर निवेशकों को 7 दिन के लिए ग्रेस पीरियड भी मिलता है.
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