कैसे त्वरण की गणना करें
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त्वरण (acceleration) किसी वस्तु के चलने पर उसकी गति में बदलाव की दर होती है। [१] X रिसर्च सोर्स अगर कोई वस्तु स्थिर गति (constant velocity) बनाए रखती है, तो वह त्वरणशील (accelerating) नहीं होती है। त्वरण केवल तब होता है जब वस्तु की गति बदलती है। अगर वस्तु स्थिर दर पर गति बदल रही है, तो वह वस्तु स्थिर त्वरण (constant acceleration) से चल रही है। [२] X रिसर्च सोर्स आप एक गति से दूसरी गति पर जाने में लगने वाले समय के आधार पर, या वस्तु के द्रव्यमान (mass) के आधार पर, मीटर प्रति सेकंड में मापी जाने वाली त्वरण की दर की गणना कर सकते हैं।
औसत दिशात्मक सूचकांक
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Sensex and Nifty: आसान भाषा में समझें क्या होते हैं सेंसेक्स और निफ्टी, और क्या है इनके बीच का अंतर
आज हम जानेंगे सेंसेक्स और निफ्टी क्या हैं और इनके बीच का खास अंतर क्या होता है? अक्सर हम सभी लोग टीवी, समाचार पत्र या किसी अन्य जगहों पर सेंसेक्स और निफ्टी के बारे में सुनते रहते हैं। रोजाना टीवी चैनलों और समाचार पत्रों पर इनके उतार चढ़ाव को लेकर आप औसत दिशात्मक सूचकांक की गणना कैसे करते हैं काफी चर्चाएं होती हैं। वहीं दूसरी तरफ क्या कभी आपने इस बारे में पता लगाया है कि सेंसेक्स और निफ्टी क्या होते हैं? और इनके बीच क्या अंतर है? अगर नहीं, तो आज हम आपको इसी के बारे में बताने वाले हैं। आइए जानते हैं विस्तार से -
सेंसेक्स
सेंसेक्स BSE यानी आप औसत दिशात्मक सूचकांक की गणना कैसे करते हैं बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का एक सूचकांक है। सेंसेक्स के सूचकांक में मार्केट कैप के आधार पर देश के 13 अलग अलग सेक्टर से 30 सबसे बड़ी कंपनियों को इंडेक्स किया जाता है।। इसमें रिलायंस, टीसीएस, इंफोसिस जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं। खबर लिखे जाने के समय सेंसेक्स की वैल्यू 58,786.67 पर चल रही है।
सेंसेक्स की शुरुआत 1 जनवरी 1986 को की गई थी। इसमें कुल 30 कंपनियां शामिल हैं। इस कारण इसको BSE30 के नाम से भी जाना जाता है। सेंसेक्स के उतार चढ़ाव से ये पता चलता है कि देश की बड़ी कंपनियों और शेयर बाजार की क्या स्थिति है?
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मानव विकास सूचकांक रैकिंग में एक पायदान ऊपर चढ़ा भारत: UNDP
मानव विकास आप औसत दिशात्मक सूचकांक की गणना कैसे करते हैं सूचकांक (ह्यूमन डिवेलपमेंट इंडेक्स) के मामले में इस बार भारत की रैकिंग में एक पायदान का सुधार हुआ है। यूनाइटेड नेशंस डिवेलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) की तरफ से शुक्रवार को जारी की गई ह्यूमन डिवेलपमेंट रैकिंग में कुल 189 देशों में भारत 130वें स्थान पर है।
प्रतीकात्मक तस्वीर
नॉर्वे, स्विटजरलैंड HDI रैकिंग में टॉप पर
रैकिंग में नॉर्वे, स्विटजरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड और जर्मनी टॉप पर हैं जबकि नाइजर, सेन्ट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, साउथ सूडान, चाड और बुरुंडी काफी कम HDI वैल्यू के साथ फिसड्डी देशों में शुमार हैं। आप औसत दिशात्मक सूचकांक की गणना कैसे करते हैं भारत का एचडीआई वैल्यू (0.640) दक्षिण एशिया के औसत 0.638 से थोड़ा सा ऊपर है। भारत के पड़ोसी देशों बांग्लादेश और पाकिस्तान के एचडीआई वैल्यू क्रमशः 0.608 और 0.562 हैं। बांग्लादेश की रैकिंग जहां 136 है, वहीं पाकिस्तान की रैकिंग 150 है।
वैश्विक स्तर पर HDI में सुधार
रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर HDI इंडेक्स में सुधार हुआ है। जिन 189 देशों के एचडीआई की गणना की गई, उनमें से आज 59 देश 'वेरी हाई ह्यूमन डिवेलपमेंट' की श्रेणी में हैं जबकि 38 देश लो एचडीआई श्रेणी में हैं। सिर्फ 8 साल पहले 2010 में 46 देश ही उच्च एचडीआई ग्रुप में थे जबकि 49 देश निम्न एचडीआई ग्रुप में थे।
भारत में जीवन आप औसत दिशात्मक सूचकांक की गणना कैसे करते हैं प्रत्याशा
जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टंसी) के मामले में भारत की स्थिति बेहतर हुई है। 1990 से 2017 के बीच भारत में जन्म के वक्त जीवन प्रत्याशा में करीब 11 सालों की बढोतरी हुई है। भारत में जीवन प्रत्याशा 68.8 साल है जबकि 2016 में यह 68.6 साल और 1990 में 57.9 साल थी। लैंगिक आधार पर अगर जीवन प्रत्याशा की बात करें तो भारत में महिलाओं की जीवन प्रत्याशा पुरुषों से ज्यादा है। महिलाओं की जीवन प्रत्याशा जहां 70.4 वर्ष है, वहीं पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 67.3 वर्ष है। खास बात यह है कि भारत में जीवन प्रत्याशा दक्षिण एशिया के औसत से कम है। इस मामले में बांग्लादेश की स्थिति हमसे बेहतर है जहां जीवन प्रत्याशा 72.9 वर्ष है।
ज्यादा HDI वैल्यू मतलब ज्यादा जीवन प्रत्याशा
1990 से अबतक औसत वैश्विक HDI में 22 प्रतिशत का शानदार इजाफा हुआ है। इस दौरान कम विकसित देशों में तो HDI में 51 प्रतिशत का इजाफा हुआ है यानी लोगों के जीवन स्तर में आप औसत दिशात्मक सूचकांक की गणना कैसे करते हैं सुधार हो रहा है। हालांकि विकसित और विकासशील देशों के बीच जीवन स्तर में बड़ा फर्क साफ दिख रहा है। नॉर्वे जैसे टॉप एचडीआई वाले देश में जन्मे एक बच्चे की जीवन प्रत्याशा 82 साल है और वह स्कूल में करीब 18 वर्ष बिताएगा। वहीं, दूसरी तरफ नाइजर जैसे रैकिंग में फिसड्डी देश में जन्मे बच्चे की जीवन प्रत्याशा सिर्फ 60 साल है और वह स्कूल में सिर्फ 5 वर्ष बिताएगा।
इयर्स ऑफ स्कूलिंग में इजाफा
भारत में स्कूल जाने की उम्र वाले बच्चों के स्कूलों में और ज्यादा वक्त रहने की संभावना बढ़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक आज भारत में बच्चों के स्कूल में रहने की संभावित समयावधि 1990 के मुकाबले 4.7 साल ज्यादा है। इस बार भारत में संभावित इयर्स ऑफ स्कूलिंग 12.3 वर्ष है। पिछली बार भी यह 12.3 वर्ष थी जबकि 1990 में यह 7.6 वर्ष थी।
ग्रॉस नैशनल इनकम (GNI) में इजाफा
रिपोर्ट के मुताबिक परचेजिंग पावर के आधार पर इस बार भारत की प्रति व्यक्ति ग्रॉस नैशनल इनकम 6,353 डॉलर (करीब 4,55,986 रुपये) है, जो पिछली बार (साल 2016 से) 327 डॉलर (करीब 23,470 रुपये) ज्यादा है। 1990 से 2017 के बीच भारत के प्रति व्यक्ति GNI में 266.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 1990 में भारत की पर कैपिटा ग्रॉस नैशनल इनकम (GNI) 1733 डॉलर (करीब 1,24,386 रुपये) थी। रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति GNI 3,677 डॉलर तो पाकिस्तान की 5,311 डॉलर रही।
असमानता चिंता का विषय
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में असमानता अब भी इसके विकास की राह में बड़ी चुनौती बनी हुई है। इसके मुताबिक असमानता की वजह से भारत के HDI वैल्यू को 26.8 प्रतिशत का नुकसान हुआ है। यह नुकसान दक्षिण एशियाई देशों में सबसे ज्यादा है।
महिलाएं हो रही हैं सशक्त
रीप्रॉडक्टिव हेल्थ, फैमिली प्लानिंग, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और सामाजिक आर्थिक सशक्तीकरण के मामले में भारत की स्थिति तमाम देशों से बेहतर है। महिला सशक्तीकरण के लिहाज से भारत दुनिया के दो तिहाई देशों से बेहतर है।
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