उल्टा चलना बेहतर मानसिक संतुलन और शरीर स्थिर रखने में मददगार
टहलने के लिए किसी ख़ास चीज़ की ज़रूरत नहीं पड़ती है. जिम की मेंबरशिप नहीं लेनी पड़ती और सबसे अच्छी बात यह कि ये पूरी तरह से फ़्री है.
हममें से ज़्यादातर लोग किसी ना किसी बहाने टहलते हैं. ये ऑटोमैटिक तरीके से होता है, बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के. इसके लिए बहुत ज़्यादा सोचना नहीं पड़ता है.
हममें से बहुत से लोगों को ये भी पता नहीं रहता है कि टहलने से हमारी सेहत को कितने सारे फ़ायदे होते हैं.
लेकिन क्या होगा अगर हम सामान्य तरीके से टहलना बंद कर दें और अपने दिमाग़ और शरीर से कहें कि हमें उल्टी चाल में चलना चाहिए.
ये केवल दिशा बदलने का मामला नहीं है. ऐसा नहीं है कि पहले सामने जा रहे थे और अब पीछे लौटने लगे हैं. इससे हमारी सेहत के लिए भी कुछ काम के फ़ायदे हो सकते हैं.
भले ही आप सामान्य रूप से सक्रिय हों या न हों, लेकिन हर रोज़ टहलने से कई फ़ायदे होते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ये सलाह है कि हमें हर हफ़्ते कुछ घंटों की एरोबिक ऐक्टिविटी करनी चाहिए. एयरोबिक ऐक्टिविटी से मतलब तैरना, टहलना, साइकिलिंग करना आदि है.
लेकिन इसके बावजूद जितना हम सोचते हैं, टहलना उससे कहीं अधिक पेचीदा मामला है.
उल्टा चलना बेहतर संतुलन और शरीर स्थिर रखने में मददगार
सीधे खड़े होने और सामने की दिशा में चलने के लिए हमारी आंखों का शरीर के बाक़ी हिस्सों से तालमेल ज़रूरी है.
लेकिन जब हम पीछे चलते हैं तो हमारा मस्तिष्क इन सारे सिस्टम के बीच को-ऑर्डिनेशन की अतिरिक्त मांग की प्रोसेसिंग के लिए ज्यादा वक्त लेता है. लेकिन ऊंचे स्तर की इस चुनौती का सामना करने पर हमारे स्वास्थ्य को ज़्यादा फ़ायदा भी होता है.
उल्टा चलने के फ़ायदे पर जो अध्ययन हुए हैं, उनसे यह लगभग स्थापित हो गया है कि इससे हमारा शरीर ज़्यादा स्थिर रहता है, इसे संतुलन बनाने में काफ़ी मदद मिलती है.
इसकी प्रैक्टिस से हमारी सामान्य चाल में सुधार होता है और संतुलन भी बेहतर होता है. ये सेहतमंद लोगों और घुटनों के ऑस्टोआर्थराइटिस से पीड़ित दोनों तरह के लोगों को मदद मिलती है.
पीछे चलते हुए हम जल्दी-जल्दी और छोटे-छोटे क़दम उठाते हैं. इससे हमारे पैर के निचले हिस्से की मांसपेशियों मज़बूत होती है. हमारे जोड़ों पर पड़ने वाला दबाव भी कम होता है.
ये तकनीक न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के शिकार और स्ट्रोक की बीमारी से उबर रहे लोगों की चलने की गति और संतुलन का पता करने और इससे बेहतर बनाने में काम आती है.
गियर बदलने या ऊपर चढ़ने-उतरने की वजह से हमारे जोड़ों और मांसपेशियों की गति की रेंज में बदलाव हो सकता है. इससे प्लांटर फ़ेसिटिस में दर्द से राहत मिल सकती है. यह एड़ियों में दर्द की एक सामान्य स्थिति है.
पीठ दर्द में हो सकता है फ़ायदा
उल्टा चलने से हमारी रीढ़ का ज़्यादा इस्तेमाल होता है. इसका मतलब है कि उल्टा चलने से लगातार पीठ दर्द से परेशान लोगों को फ़ायदा हो सकता है.
चलने की दिशा बदलने की वजह से न सिर्फ़ कुछ बीमारियों में फ़ायदा होता है बल्कि इसके और भी कई फ़ायदे हैं. पैदल चलने से हमें अपना वज़न नियंत्रित करने में मदद मिलती है. लेकिन उल्टा चलने का और अच्छा असर हो सकता है. एक ही गति से सीधा चलने की तुलना में उल्टा चलने पर 40 फ़ीसदी ज़्यादा ऊर्जा खर्च होती है.
मोटी महिलाओं को उल्टा चलाने के लिए आयोजित छह सप्ताह के एक ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान की गई स्टडी से पता चला कि उनके वज़न में कमी आई थी. जब हमें उल्टा चलने का आत्मविश्वास हासिल हो जाता है तो हम इस दिशा में दौड़ भी सकते हैं.
हालांकि इसे री-हैबिलिटेशन टूल्स की तरह इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन उल्टा दौड़ने से घुटनों को सीधा रखने में अहम भूमिका निभाने वाली मांसपेशियों को म़जबूती मिलती है.
एथलीटों को मिल सकती है मदद
इससे न सिर्फ़ चोट रोकने में मदद मिलती है बल्कि एथलीटों की ताक़त पैदा करने की क्षमता और प्रदर्शन में भी मदद मिलती है.
उल्टा दौड़ने में सीधा दौड़ने की तुलना में कम ऊर्जा खर्च होती है. इसकी वजह से अनुभवी धावकों को फ़ायदा होता है. खास कर ऐसे धावकों को जिनके पास कम ऊर्जा खर्च कर ज़्यादा दौड़ने की तकनीक होती है.
अगर वजन साथ लेकर पीछे की ओर चला जाए तो इससे युवा एथलीटों की रनिंग टाइम में भी सुधार हो सकता है.
वज़न को खींचते हुए उल्टा चला जाए तो चोट का जोख़िम भी ख़त्म हो जाता है. अगर कम वज़न के साथ इस तरह की एक्सरसाइज़ को अंजाम दिया जाए तो बाहरी ताक़त बढ़ाने में मददगार हो सकता है. अगर शरीर के वज़न के दस फ़ीसदी के बराबर वज़न को खींचा जाए तो युवा एथलीट कम समय में ज़्यादा रफ़्तार से दौड़ सकते हैं.
उल्टा चलना कैसे शुरू करें
उल्टा चलाना जटिल नहीं है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि ये बिल्कुल आसान है. अगर आप अपनी एक्सरसाइज़ में उल्टा चलने को शामिल करना चाहते हैं तो क्या करना होगा?
उल्टा चलते वक्त हम पीछे न गिरें इसलिए बाधाओं और ख़तरों से सावधान रहते हैं. अगर आप इससे डर रहे हों तो इस एक्सरसाइज़ को घर के अंदर करें. यहां आपको पता होगा कि पीछे क्या है. आप इसे ओपन स्पेस या समतल धरातल पर भी कर सकते हैं.
इस एक्सरसाइज़ को करते वक्त अपने शरीर को मरोड़ने और कंधे से ऊपर देखने की कोशिश न करें. अपने अंगूठे को पीछे खींचते हुए अपने सिर और छाती को ऊपर रखें. अंगूठे से एड़ी को ओर अपने पैर को खींचते वक्त यही पोज़ीशन अपनाएं.
एक बार जब इसे करते हुए ज़्यादा आत्मविश्वास हासिल कर लें तो आप इसे तेज़ी से कर सकते हैं. आप ट्रेड मिल पर भी इसे अपना सकते हैं. हां ज़रूरत पड़ने पर गाइड रेल (सपोर्ट) का इस्तेमाल कर लें.
अगर वज़न के साथ उल्टा चलना चाहते हैं तो पहले कम वज़न से शुरुआत करें. लंबी दूर तय करने के बजाय छोटी-छोटी दूरियों के कई सेट करें. शुरू में 20 मीटर से ज़्यादा की दूरी न रखें.
10 BEST Demat Account In India | भारत में 10 सबसे बेस्ट डीमैट अकाउंट
पहले के समय में पेपर वर्क के माध्यम से शेयर खरीदने और बेचने की प्रक्रिया काफी मुश्किल होता था। इसी को दूर करने के लिए डीमैट अकाउंट (Demat Account) शुरू किया गया। डीमैट का मतलब ‘डीमैटरियलाइजेशन’ ‘dematerialization’ होता है। डीमैट अकाउंट (shares and securities) को डीमटेरियलाइज करता है, ताकि उन्हें इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखा जा सके और कहीं से भी डिजिटल रूप में खरीदा और बेंचा जा सके।
आज के समय में डीमैट अकाउंट (Demat Account) के बिना, आप शेयरों की खरीद-विक्री नहीं कर सकते Pocket Option पर ट्रेड करने में कितना खर्च आता है? और ना ही ट्रैडिंग कर सकते हैं। क्योंकि वर्ष 1996 में, Securities and Exchange Board of India (SEBI) ने एक आदेश जारी किया था जिसमें कहा गया था कि सभी निवेशकों के पास Pocket Option पर ट्रेड करने में कितना खर्च आता है? शेयरों में ट्रैडिंग करने के लिए एक डीमैट अकाउंट होना अनिवार्य है।
आज के इस पोस्ट में हम आपको 10 सबसे बेस्ट डीमैट अकाउंट के बारे में जानकारी देने ताकि आप तय कर सकें कि आपके जरूरत के अनुसार कौन सा सबसे अच्छा है।
निवेशकों के लिए जरूरी जानकारी: इंट्रा-डे ट्रेडिंग पर जानें, कैसे लगेगा आयकर
शेयर बाजार के जानकार कुंज बंसल का कहना है कि निवेशक जब एक दिन के भीतर ही स्टॉक की खरीद-फरोख्त करता है तो उसे इंट्रा-डे ट्रेडिंग कहते हैं।
कोविड- 19 महामारी के अनिश्तिता भरे दौर में निवेशक अब शेयर बाजार में लंबे समय तक पैसा लगाने के बजाए इंट्रा-ट्रेडिंग में हाथ आजमाने लगे हैं। नौकरीपेशा व आम आदमी भी इंट्रा-डे ट्रेडिंग में पैसे लगाना पसंद करता है। ऐसे निवेशकों के लिए ये जानना बेहद जरूरी है कि इंट्रा-डे ट्रेडिंग से हुई कमाई पर आयकर गणना कैसे की जाएगी। पेश है प्रमोद तिवारी की रिपोर्ट-
कारोबार से हुई कमाई माना जाएगा मुनाफा
शेयर बाजार के जानकार कुंज बंसल का कहना है कि निवेशक जब एक दिन के भीतर ही स्टॉक की खरीद-फरोख्त करता है तो उसे इंट्रा-डे ट्रेडिंग कहते हैं। इस तरह ट्रेडिंग का मकसद निवेश करना नहीं, बल्कि बाजार में उतार-चढ़ाव से मुनाफा कमाना है।
लिहाजा ऐसे Pocket Option पर ट्रेड करने में कितना खर्च आता है? मुनाफे को कारोबार से हुई कमाई माना जाएगा। ट्रेडिंग करते समय भी जब निवेशक स्टॉक खरीदेगा तो भी उसे यह बताना पड़ेगा कि संबंधित स्टॉक को इंट्रा-डे के लिए खरीदा जा रहा अथवा Pocket Option पर ट्रेड करने में कितना खर्च आता है? डिलीवरी के लिए। यहां डिलीवरी का मतलब स्टॉक को एक दिन से ज्यादा समय के लिए रखना है।
कोई नौकरीपेशा इंट्रा-डे ट्रेडिंग करता है तो यह कारोबार या पेशे के रूप में अतिरिक्त आय होगी और रिटर्न भरते समय आईटीआर फॉर्म-3 का उपयोग करना होगा। वित्तवर्ष 2020-21 में अगर किसी ने इंट्रा-डे ट्रेडिंग किया है तो उसे आईटीआर-3 में इसके मुनाफे या घाटे का विवरण देना होगा।
निवेशकों के लिए जरुरी जानकारी
- स्टॉक में निवेश से हुए नुकसान को समायोजन आठ साल किया जा सकेगा।
- एलटीसीजी से नुकसान की भरपाई एसटीसीजी में हो सकेगी, एसटीसीजी की भरपाई, एसटीसीजी से नहीं कर सकेंगे।
- इंट्रा-डे से हुए नुकसान का समायोजन करने को पेशेवरसे ऑडिट कराना जरूरी होगा।
खर्च और नुकसान के समायोजन का मौका
आयकरदाताओं को इंट्रा-डे ट्रेडिंग के कारोबार की श्रेणी में रखने का फायदा भी मिलता है। आयकर कानून के तहत इस ट्रेडिंग पर आए खर्च को आप कारोबारी खर्च की तरह रिटर्न में समायोजित कर सकते हैं। रिटर्न भरते समय करदाता इंटरनेट, टेलीफोन, डीमैट खाते के खर्च के अलावा ब्रोकर शुल्क पर भी टैक्स छूट ले सकते हैं। हालांकि इसका समायोजन वेतन, अन्य कारोबार, आवासीय संपत्ति या किसी और कमाई के साथ नहीं कर सकेंगे। नुकसान को अगले साल के मुनाफे में समायोजित करने के लिए रिटर्न में भी इसका उल्लेख करना होगा।
एक से ज्यादा निवेश तो भरेंगे आईटीआर फॉर्म-2
स्टॉक में एक दिन से ज्यादा निवेश करने वाले करदाताओं रिटर्न भरते समय आईटीआर-2 फॉर्म चुनना होगा। ऐसे निवेशकों पर दो तरह से आयकर की देनदारी बनती है। अगर उसने 12 महीने से कम समय के लिए निवेश किया है तो लघु अवधि का पूंजीगत लाभ कर देना होगा। यह स्टॉक से एक लाख रुपये से ऊपर के शुद्ध मुनाफे पर 10 फीसदी लगता है। एलटीसीजी के मामले में नुकसान की भरपाई आठ साल तक की जा सकेगी।
विस्तार
कोविड- 19 महामारी के अनिश्तिता भरे दौर में निवेशक अब शेयर बाजार में लंबे समय तक पैसा लगाने के बजाए इंट्रा-ट्रेडिंग में हाथ आजमाने लगे हैं। नौकरीपेशा व आम आदमी भी इंट्रा-डे ट्रेडिंग में पैसे लगाना पसंद करता है। ऐसे निवेशकों के लिए ये जानना बेहद जरूरी है कि इंट्रा-डे ट्रेडिंग से हुई कमाई पर आयकर गणना कैसे की जाएगी। पेश है प्रमोद तिवारी की रिपोर्ट-
कारोबार से हुई कमाई माना जाएगा मुनाफा
शेयर बाजार के जानकार कुंज बंसल का कहना है कि निवेशक जब एक दिन के भीतर ही स्टॉक की खरीद-फरोख्त करता है तो उसे इंट्रा-डे ट्रेडिंग कहते हैं। इस तरह ट्रेडिंग का मकसद निवेश करना नहीं, बल्कि बाजार में उतार-चढ़ाव से मुनाफा कमाना है।
लिहाजा ऐसे मुनाफे को कारोबार से हुई कमाई माना जाएगा। ट्रेडिंग करते समय भी जब निवेशक स्टॉक खरीदेगा तो भी उसे यह बताना पड़ेगा कि संबंधित स्टॉक को इंट्रा-डे के लिए खरीदा जा रहा अथवा डिलीवरी के लिए। यहां डिलीवरी का मतलब स्टॉक को एक दिन से ज्यादा समय के लिए रखना है।
कोई नौकरीपेशा इंट्रा-डे ट्रेडिंग करता है तो यह कारोबार या पेशे के रूप में अतिरिक्त आय होगी और रिटर्न भरते समय आईटीआर फॉर्म-3 का उपयोग करना होगा। वित्तवर्ष 2020-21 में अगर किसी ने इंट्रा-डे ट्रेडिंग किया है तो उसे आईटीआर-3 में इसके मुनाफे या घाटे का विवरण देना होगा।
- स्टॉक में निवेश से हुए नुकसान को समायोजन आठ साल किया जा सकेगा।
- एलटीसीजी से नुकसान की भरपाई एसटीसीजी में हो सकेगी, एसटीसीजी की भरपाई, एसटीसीजी से नहीं कर सकेंगे।
- इंट्रा-डे से हुए नुकसान का समायोजन करने को पेशेवरसे ऑडिट कराना जरूरी होगा।
खर्च और नुकसान के समायोजन का Pocket Option पर ट्रेड करने में कितना खर्च आता है? मौका
आयकरदाताओं को इंट्रा-डे ट्रेडिंग के कारोबार की श्रेणी में रखने का फायदा भी मिलता है। आयकर कानून के तहत इस ट्रेडिंग पर आए खर्च को आप कारोबारी खर्च की तरह रिटर्न में समायोजित कर सकते हैं। रिटर्न भरते समय करदाता इंटरनेट, टेलीफोन, डीमैट खाते के खर्च के अलावा ब्रोकर शुल्क पर भी टैक्स छूट ले सकते हैं। हालांकि इसका समायोजन वेतन, अन्य कारोबार, आवासीय संपत्ति या किसी और कमाई के साथ नहीं कर सकेंगे। नुकसान को अगले साल के मुनाफे में समायोजित करने के लिए रिटर्न में भी इसका उल्लेख करना होगा।
एक से ज्यादा निवेश तो भरेंगे आईटीआर फॉर्म-2
स्टॉक में एक दिन से ज्यादा निवेश करने वाले करदाताओं रिटर्न भरते समय आईटीआर-2 फॉर्म चुनना होगा। ऐसे निवेशकों पर दो तरह से आयकर की देनदारी बनती है। अगर उसने 12 महीने Pocket Option पर ट्रेड करने में कितना खर्च आता है? से कम समय के लिए निवेश किया है तो लघु अवधि का पूंजीगत लाभ कर देना होगा। यह स्टॉक से एक लाख रुपये से ऊपर के शुद्ध मुनाफे पर 10 फीसदी लगता है। एलटीसीजी के मामले में नुकसान की भरपाई आठ साल तक की जा सकेगी।
निवेशकों के लिए जरूरी जानकारी: इंट्रा-डे ट्रेडिंग पर जानें, कैसे लगेगा आयकर
शेयर बाजार के जानकार कुंज बंसल का कहना है कि निवेशक जब एक दिन के भीतर ही स्टॉक की खरीद-फरोख्त करता है तो उसे इंट्रा-डे ट्रेडिंग कहते हैं।
कोविड- 19 महामारी के अनिश्तिता भरे दौर में निवेशक अब शेयर बाजार में लंबे समय तक पैसा लगाने के बजाए इंट्रा-ट्रेडिंग में हाथ आजमाने लगे हैं। नौकरीपेशा व आम आदमी भी इंट्रा-डे ट्रेडिंग में पैसे लगाना पसंद करता है। ऐसे निवेशकों के लिए ये जानना बेहद जरूरी है कि इंट्रा-डे ट्रेडिंग से हुई कमाई पर आयकर गणना कैसे की जाएगी। पेश है प्रमोद तिवारी की रिपोर्ट-
कारोबार से हुई कमाई माना जाएगा मुनाफा
शेयर बाजार के जानकार कुंज बंसल का कहना है Pocket Option पर ट्रेड करने में कितना खर्च आता है? कि निवेशक जब एक दिन के भीतर ही स्टॉक की खरीद-फरोख्त करता है तो उसे इंट्रा-डे ट्रेडिंग कहते हैं। इस तरह ट्रेडिंग का मकसद निवेश करना नहीं, बल्कि बाजार में उतार-चढ़ाव से मुनाफा कमाना है।
लिहाजा ऐसे मुनाफे को कारोबार से हुई कमाई माना जाएगा। ट्रेडिंग करते समय भी जब निवेशक स्टॉक खरीदेगा तो भी उसे यह बताना पड़ेगा कि संबंधित स्टॉक को इंट्रा-डे के लिए खरीदा जा रहा अथवा डिलीवरी के लिए। यहां डिलीवरी का मतलब स्टॉक को एक दिन से ज्यादा समय के लिए रखना है।
कोई नौकरीपेशा इंट्रा-डे ट्रेडिंग करता है तो यह कारोबार या पेशे के रूप में अतिरिक्त आय होगी और रिटर्न भरते समय आईटीआर फॉर्म-3 का उपयोग करना होगा। वित्तवर्ष 2020-21 में अगर किसी ने इंट्रा-डे ट्रेडिंग किया है तो उसे आईटीआर-3 में इसके मुनाफे या घाटे का विवरण देना होगा।
निवेशकों के लिए जरुरी जानकारी
- स्टॉक में निवेश से हुए नुकसान को समायोजन आठ साल किया जा सकेगा।
- एलटीसीजी से नुकसान की भरपाई एसटीसीजी में हो सकेगी, एसटीसीजी की भरपाई, एसटीसीजी से नहीं कर सकेंगे।
- इंट्रा-डे से हुए नुकसान का समायोजन करने को पेशेवरसे ऑडिट कराना जरूरी होगा।
खर्च और नुकसान के समायोजन का मौका
आयकरदाताओं को इंट्रा-डे ट्रेडिंग के कारोबार की श्रेणी में रखने का फायदा भी मिलता है। आयकर कानून के तहत इस ट्रेडिंग पर आए खर्च को आप कारोबारी खर्च की तरह रिटर्न में समायोजित कर सकते हैं। रिटर्न भरते समय करदाता इंटरनेट, टेलीफोन, डीमैट Pocket Option पर ट्रेड करने में कितना खर्च आता है? खाते के खर्च के अलावा ब्रोकर शुल्क पर भी टैक्स छूट ले सकते हैं। हालांकि इसका समायोजन वेतन, अन्य कारोबार, आवासीय संपत्ति या किसी और कमाई के साथ नहीं कर सकेंगे। नुकसान को अगले साल के मुनाफे में समायोजित करने के लिए रिटर्न में भी इसका उल्लेख करना होगा।
एक से ज्यादा निवेश तो भरेंगे आईटीआर फॉर्म-2
स्टॉक में एक दिन से ज्यादा निवेश करने वाले करदाताओं रिटर्न भरते समय आईटीआर-2 फॉर्म चुनना होगा। ऐसे निवेशकों पर दो तरह से आयकर की देनदारी बनती है। अगर उसने 12 महीने से कम समय के लिए निवेश किया है तो लघु अवधि Pocket Option पर ट्रेड करने में कितना खर्च आता है? का पूंजीगत लाभ कर देना होगा। यह स्टॉक से एक लाख रुपये से ऊपर के शुद्ध मुनाफे पर 10 फीसदी लगता है। एलटीसीजी के मामले में नुकसान की भरपाई आठ साल तक की जा सकेगी।
विस्तार
कोविड- 19 महामारी के अनिश्तिता भरे दौर में निवेशक अब शेयर बाजार में लंबे समय तक पैसा लगाने के बजाए इंट्रा-ट्रेडिंग में हाथ आजमाने लगे हैं। नौकरीपेशा व आम आदमी भी इंट्रा-डे ट्रेडिंग में पैसे लगाना पसंद करता है। ऐसे निवेशकों के लिए ये जानना बेहद जरूरी है कि इंट्रा-डे ट्रेडिंग से हुई कमाई पर आयकर गणना कैसे की जाएगी। पेश है प्रमोद तिवारी की रिपोर्ट-
कारोबार से हुई कमाई माना जाएगा मुनाफा
शेयर बाजार के जानकार कुंज बंसल का कहना है कि निवेशक जब एक दिन के भीतर ही स्टॉक की खरीद-फरोख्त करता है तो उसे इंट्रा-डे ट्रेडिंग कहते हैं। इस तरह ट्रेडिंग का मकसद निवेश करना नहीं, बल्कि बाजार में उतार-चढ़ाव से मुनाफा कमाना है।
लिहाजा ऐसे मुनाफे को कारोबार से हुई कमाई माना जाएगा। ट्रेडिंग करते समय भी जब निवेशक स्टॉक खरीदेगा तो भी उसे यह बताना पड़ेगा कि संबंधित स्टॉक को इंट्रा-डे के लिए खरीदा जा रहा अथवा डिलीवरी के लिए। यहां डिलीवरी का मतलब स्टॉक को एक दिन से ज्यादा समय के लिए रखना है।
कोई नौकरीपेशा इंट्रा-डे ट्रेडिंग करता है तो यह कारोबार या पेशे के रूप में अतिरिक्त आय होगी और रिटर्न भरते समय आईटीआर फॉर्म-3 का उपयोग करना होगा। वित्तवर्ष 2020-21 में अगर किसी ने इंट्रा-डे ट्रेडिंग किया है तो उसे आईटीआर-3 में इसके मुनाफे या घाटे का विवरण देना होगा।
- स्टॉक में निवेश से हुए नुकसान को समायोजन आठ साल किया जा सकेगा।
- एलटीसीजी से नुकसान की भरपाई एसटीसीजी में हो सकेगी, एसटीसीजी की भरपाई, एसटीसीजी से नहीं कर सकेंगे।
- इंट्रा-डे से हुए नुकसान का समायोजन करने को पेशेवरसे ऑडिट कराना जरूरी होगा।
खर्च और नुकसान के समायोजन का मौका
आयकरदाताओं को इंट्रा-डे ट्रेडिंग के कारोबार की श्रेणी में रखने का फायदा भी मिलता है। आयकर कानून के तहत इस ट्रेडिंग पर आए खर्च को आप कारोबारी खर्च की तरह रिटर्न में समायोजित कर सकते हैं। रिटर्न भरते समय करदाता इंटरनेट, टेलीफोन, डीमैट खाते के खर्च के अलावा ब्रोकर शुल्क पर भी टैक्स छूट ले सकते हैं। हालांकि इसका समायोजन वेतन, अन्य कारोबार, आवासीय संपत्ति या किसी और कमाई के साथ नहीं कर सकेंगे। नुकसान को अगले साल के मुनाफे में समायोजित करने के लिए रिटर्न में भी इसका उल्लेख करना होगा।
एक से ज्यादा निवेश तो भरेंगे आईटीआर फॉर्म-2
स्टॉक में एक दिन से ज्यादा निवेश करने वाले करदाताओं रिटर्न भरते समय आईटीआर-2 फॉर्म चुनना होगा। ऐसे निवेशकों पर दो तरह से आयकर की देनदारी बनती है। अगर उसने 12 महीने से कम समय के लिए निवेश किया है तो लघु अवधि का पूंजीगत लाभ कर देना होगा। यह स्टॉक से एक लाख रुपये से ऊपर के शुद्ध मुनाफे पर 10 फीसदी लगता है। एलटीसीजी के मामले में नुकसान की भरपाई आठ साल तक की जा सकेगी।
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