रुपये में गिरावट या उछाल?

जब पी. चिदंबरम वित्त मंत्री थे तब वह अक्सर ऐसी अखबारी सुर्खियों को देखकर नाराज हो जाते थे जिनमें कहा जाता था कि ‘रुपया नये स्तर तक गिर गया’ या उसमें ‘रिकॉर्ड गिरावट’ आई। वह मुद्रा की गिरती कीमत को अपने प्रदर्शन से जोड़कर देखते थे लेकिन इन सुर्खियों के बारे में वह एक मार्के की बात कहते थे। वह कहते थे कि अगर रुपये जैसी आमतौर पर कमजोर मुद्रा गिर रही है तो हर गिरावट (भले ही वह कुछ पैसों की हो) रिकॉर्ड गिरावट ही होगी। ये सुर्खियां और मंत्री की प्रतिक्रिया दोनों ने ही कमजोर मुद्रा में गिरावट से जुड़े दिमागी पूर्वग्रह की अनदेखी की। यकीनन मुद्रा में गिरावट, उसके मूल्य में तेजी की तुलना में अधिक ध्यान खींचती है।

यह इतिहास प्रासंगिक क्यों है? क्योंकि डॉलर के समक्ष रुपये में ‘रिकॉर्ड गिरावट’ एक बार फिर सुर्खियों में है। समाचार पत्र ये नहीं कहते (हालांकि निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को इस ओर इशारा किया) कि डॉलर के मुकाबले लगभग सभी मुद्राओं में गिरावट आ रही है और रुपया अन्य मुद्राओं की तुलना में कम गिरा है। वर्ष 2022 की पहली छमाही में डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में छह फीसदी की गिरावट आई है। यूरो 11.6 प्रतिशत, येन 19.2 प्रतिशत और पाउंड 13.2 प्रतिशत गिरा है। चीन की मुद्रा युआन जरूर केवल 3.6 प्रतिशत गिरी है लेकिन ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और पाकिस्तान की मुद्राएं और ज्यादा गिरी हैं। ऐसे में सही खबर यह होनी चाहिए कि रुपया लगभग अन्य सभी मुद्राओं की तुलना में मजबूत हुआ है। लेकिन यह खबर नदारद है।

क्या यह बात मायने रखती है? यकीनन क्योंकि इससे नीति गलत दिशा में जाती है। उदाहरण के लिए नरेंद्र मोदी सरकार जब सरकार में आई तब ‘मजबूत मुद्रा’ की नीति को लेकर एक तरह का पूर्वग्रह था। इस नीति को तैयार करने वालों ने इस बात की अनदेखी कर दी कि दीर्घावधि के सफल विकास वाले देशों (चीन और जापान इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं) ने अपने निर्यात बाजार की बेहतरी के लिए ‘कमजोर मुद्रा’ की नीति अपनाई। इसका कारण एकदम सहज है: यदि अपनी विकास अवस्था के कारण आप कीमत पर प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं तो आप तकनीक या उत्पाद गुणवत्ता पर मुकाबला नहीं कर सकते। ऐसे में कमजोर मुद्रा मदद करती है। समय के साथ निर्यात को गति मिलती है और अर्थव्यवस्था बेहतर होती है। इसके साथ ही मुद्रा की गिरावट का रुख भी पलट जाता है।

कई लोग देश और मुद्रा के इस दीर्घावधि के कारण-प्रभाव संबंध को गलत समझते हैं। मजबूत अर्थव्यवस्था की मुद्रा मजबूत होती है और पूंजी प्रवाह इसमें मदद करता है। एक कमजोर अर्थव्यवस्था या उच्च मुद्रास्फीति वाली अर्थव्यवस्था, मुद्रा को कृत्रिम मजबूती देने से मजबूत नहीं होती। ऐसी नीति स्थायी नहीं होती और इसमें पूंजी के बाहर जाने का खतरा रहता है। जहां तक व्यापार की बात है चार दशक से

अधिक समय में (नेहरू की आत्मनिर्भरता के वर्षों समेत) भारत ने रुपये को अधिमूल्यित रखा। ऐसे में जहां पूर्वी एशियाई देशों का व्यापार बढ़ा, भारत का विश्व व्यापार में हिस्सा 80 प्रतिशत गिरकर 2.5 प्रतिशत से 0.5 प्रतिशत हो गया।

यहां दो विरोधाभासी उदाहरणों से बात स्पष्ट होगी। भारतीय रुपया पाकिस्तानी रुपये से मजबूत रहा है जो अब एक डॉलर के मुकाबले 205 रुपये पर पहुंच चुका है। ऐसा इसलिए हुआ कि पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था का कुप्रबंधन हुआ। दूसरी ओर थाई मुद्रा बहत जो एक समय रुपये से 10 प्रतिशत तेज थी अब उसका मूल्य 2.20 रुपये है। मजबूत मुद्रा के साथ भी थाईलैंड अपने सालाना व्यापार अधिशेष को बरकरार रख सका है। सन 1991 के बाद भारतीय मुद्रा तथा अन्य मुद्राओं के अधिक बाजारोन्मुखी होने से व्यापार और मुद्रास्फीति पर भारत का प्रदर्शन सुधरा लेकिन रुपये में गिरावट के बाद भी उसका व्यापार घाटा बरकरार रहा। स्पष्ट है कि अब तक किए गए सुधार अपर्याप्त हैं।

अगर भारत के राजनेता मजबूत रुपया चाहते हैं तो उन्हें अर्थव्यवस्था का प्रबंधन सुधारना होगा। मुद्रास्फीति पर नियंत्रण, उत्पादकता में सुधार लाना होगा। रुपये को मजबूत करने के लिए रिजर्व बैंक से अरबों डॉलर खर्च कराना गलत तरीका होगा। तथ्य तो यह है कि कुछ समय पहले तक भारत में मुद्रास्फीति उसके महत्त्वपूर्ण बाजारों की तुलना में ऊंची थी। यह स्वाभाविक है कि रुपये की घरेलू क्रय शक्ति में आई गिरावट कम विनिमय दर में नजर आए। प्रदर्शन में बदलाव के साथ रुपया बिना रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप के स्वयं को थाम लेगा।

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार दो साल के निचले स्तर पर पहुंचा, गिरते रुपये को रोकने के लिए बेचने पड़ रहे डॉलर

शुक्रवार को रिजर्व बैंक ने साप्ताहिक आंकड़े जारी किए हैं. 21 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में मुद्रा भंडार का महत्वपूर्ण घटक मानी जाने वाली विदेशी मुद्रा आस्तियां (FCA) 3.593 अरब डॉलर घटकर 465.075 अरब डॉलर रह गईं. देश का स्वर्ण भंडार मूल्य के संदर्भ में 24.7 करोड़ डॉलर घटकर 37,206 अरब डॉलर रह गया.

सांकेतिक तस्वीर.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 28 अक्टूबर 2022,
  • (अपडेटेड 28 अक्टूबर 2022, 11:41 PM IST)

देश में विदेशी मुद्रा भंडार में फिर बड़ी गिरावट हुई है. भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को डाटा जारी किया है. 21 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 3.847 अरब डॉलर घटकर 524.52 अरब डॉलर पर पहुंच गया है. पिछले रिपोर्टिंग सप्ताह में कुल भंडार 4.50 बिलियन अमेरिकी डॉलर गिरकर 528.37 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया था. पिछले कई महीनों से विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट देखी जा रही है. अब ये दो साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है.

बता दें कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार में जुलाई 2020 के बाद सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. सालभर में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 116 अरब डॉलर घटा है. एक साल पहले अक्टूबर 2021 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के उच्च स्तर पर पहुंच गया था. देश के मुद्रा भंडार में गिरावट आने की मुख्य वजह रुपये की गिरावट को थामने का प्रयास माना जा रहा है. केंद्रीय बैंक इस समय मुद्रा भंडार से मदद प्राप्त कर रहा है.

रुपये ने बनाया गिरने का नया रिकॉर्ड, पहली बार 82 के पार, आपके ऊपर होगा ये असर

Dollar Vs Rupee: एक्सपर्ट्स की मानें तो अनिश्चितता के समय में लोग सुरक्षित ठिकाना तलाशते हैं और डॉलर उन्हें सबसे बैहतर विकल्प लगता है. ऐसे में विदेशी निवेशक जब बिकवाली करते हैं, तो विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ता है और डॉलर की मांग बढ़ती है, जबकि रुपये समेत अन्य करेंसियों की मांग कम हो जाती है.

रिकॉर्ड निचले स्तर तक लुढ़का रुपया

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 07 अक्टूबर 2022,
  • (अपडेटेड 07 अक्टूबर 2022, 2:21 PM IST)

भारतीय करेंसी रुपया (Rupee) लगातार गिरने का नया रिकॉर्ड बनाता जा रहा है. बीते दिनों अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ये 81 के स्तर तक फिसल गया था, तो अब नए निचले स्तर (Rupee Record Low) को छूते हुए 82 के पार निकल गया है. शुक्रवार को शुरुआती कारोबार में यह कमजोर होकर 82.33 के स्तर पर आ गया. यहां बता दें रुपये में ये गिरावट कई तरह से आप पर असर (impact) डालने वाली है.

16 पैसे टूटकर छुआ रिकॉर्ड लो स्तर
पहले बात कर लेते हैं Rupee में लगातार जारी गिरावट के बारे में, तो बीते कारोबारी दिन मुद्रा बाजार (Currency Market) में डॉलर के मुकाबले रुपया 81.88 के स्तर पर बंद हुआ था. बीते कुछ दिनों में इसमें कभी मामूली बढ़त और कभी गिरावट देखने को मिल रही थी. लेकिन कई रिपोर्ट्स में इसके 82 तक गिरने की आशंका जताई जा रही थी.

शुक्रवार को जैसे ही कारोबार शुरू हुआ भारतीय करेंसी (Indian Currency) में 16 पैसे की जोरदार गिरावट आई और रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले (Rupee Vs Dollar) रिकॉर्ड निचले स्तर 82.33 तक फिसल गया. पहली बार 23 सितंबर 2022 को इसने 81 रुपये के निचले स्तर को छुआ था. जबकि उससे पहले 20 जुलाई को यह 80 रुपये का लेवल पार कर गया था. यहां बता दें रुपया साल भर पहले अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 74.54 के स्तर पर था.

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रुपये में गिरावट के बड़े कारण
भारतीय मुद्रा रुपये में लगातार आ रही गिरावट के एक नहीं बल्कि कई कारण है. हालांकि, इसके टूटने की सबसे बड़ी वजह अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में बढ़ोतरी को माना जा रहा है. दरअसल, अमेरिका में महंगाई (US Inflation) चार दशक के उच्च स्तर पर बनी हुई है और इसके चलते वगां ब्याज दरें लगातार बढ़ (US Rate Hike) रही हैं. बीते दिनों एक बार फिर से फेड रिजर्व ने इनमें 0.75 फीसदी की भारी-भरकम बढ़ोतरी की.

दरें बढ़ने की रफ्तार में सुस्ती नहीं आने का संकेत मिलने के कारण दुनिया भर की करेंसी डॉलर के मुकाबले तेजी से गिर रही हैं. क्योंकि डॉलर के मजबूत होने पर इन्वेस्टर्स दुनिया भर के बाजारों से पैसे निकाल गिरावट की मुद्रा रहे हैं और सुरक्षा के लिहाज से अमेरिकी डॉलर में अपना इन्वेस्टमेंट झोंक रहे हैं. इन्वेस्टर्स की इस बिकवाली का असर रुपया समेत दुनिया भर की करेंसियों पर हो रहा है. इसके अलावा जबकि, रूस और यूक्रेन युद्ध और उससे उपजे भू-राजनैतिक हालातों ने भी रुपया पर दबाव बढ़ाने का काम किया है.

डॉलर बन रहा सुरक्षित ठिकाना!
विशेषज्ञों की मानें तो अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जब उथल-पुथल मचती है, तो निवेशक डॉलर की ओर अपना रुख करते हैं. डॉलर की मांग बढ़ती है गिरावट की मुद्रा तो फिर अन्य करेंसियों पर दबाव बढ़ता चला जाता है. दुनिया भर में अनिश्चितता की बात करें तो कोरोना महामारी या फिर रूस-यूक्रेन में युद्ध, इनकी वजह से आपूर्ति में रुकावट आई है, जो दुनियाभर में अव्यवस्था पैदा करने वाली साबित हुई है.

उन्होंने कहा, जब अनिश्चितता का समय होता है तो लोग सुरक्षित ठिकाना खोजते हैं और डॉलर को एक सुरक्षित ठिकाना मानते हैं. विदेशी निवेशकों जब जोरदार बिकवाली करते हैं, तो फिर विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ता है और डॉलर की मांग बढ़ जाती है, जबकि रुपये समेत अन्य करेंसियों की मांग कम हो जाती है.

भारत के लिए इसलिए बड़ी मुसीबत
रुपये के टूटने से कई क्षेत्रों में बड़ा असर देखने को मिलता है. इसमें तेल की कीमतों से लेकर रोजमर्रा के सामनों की कीमतों में इजाफा दिखाई देने लगता है. भारत के लिए डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट इसलिए भी बड़ी मुसीबत का सबब है, क्योंकि भारत जरूरी तेल, इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी समेत कई दवाओं का भारी मात्रा में आयात करता है. अगर रुपये में इसी तरह गिरावट जारी रही तो आयात और महंगा हो जाएगा और आपको ज्यादा खर्च करना होगा.

गौरतलब है कि भारत तेल से लेकर जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत अन्य गैजेट्स के लिए दूसरे देशों से आयात पर निर्भर है. अधिकतर मोबाइल और गैजेट का आयात चीन और अन्य पूर्वी एशिया के शहरों से होता और ज्यादातर कारोबार डॉलर में ही होता है. विदेशों से आयात होने के कारण इनकी कीमतों में इजाफा तय है, मतलब मोबाइल और अन्य गैजेट्स पर महंगाई बढ़ जाएगी. बता दें भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है और इसका भी भुगतान डॉलर में ही होता है. अब डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च करना होगा, जिससे माल ढुलाई महंगी होगी और इसका असर हर जरूरत की चीज पर महंगाई के रूप में दिखाई देगा.

विदेश में बच्चों को पढ़ाना-घूमना महंगा
दरअसल, कच्चे तेल, सोना और अन्य धातुओं की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर में तय होती हैं. ऐसे में दिनों-दिन रुपये की बिगड़ रही हालत से इनकी खरीद के लिए हमें ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च करना पड़ेगा. घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी बढ़ेंगी. इसके अलावा रुपये में गिरावट से भारतीयों के लिए विदेश में पढ़ाई करना और घूमना महंगा हो जाएगा. घरेलू मुद्रा में इस बड़ी गिरावट से विदेश में अब समान शिक्षा के लिए पहले की तुलना करीब 15 से 20 फीसदी ज्यादा खर्च करना पड़ेगा.

Forex Reserves: विदेशी मुद्रा भंडार ने फिर लगाया गोता, सात दिनों में 1.09 अरब डॉलर की आई गिरावट

प्रतीकात्मक तस्वीर

देश के मुद्रा भंडार में गिरावट आने का मुख्य कारण यह है कि वैश्विक घटनाक्रमों की वजह से रुपये की गिरावट को थामने के लिए . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : November 11, 2022, 20:43 IST

हाइलाइट्स

विदेशी मुद्रा भंडार 1.09 अरब डॉलर घटकर 529.99 अरब डॉलर पर.
गोल्ड रिजर्व का मूल्य 70.5 करोड़ डॉलर घटकर 37.057 अरब डॉलर पर.
FCA 12 करोड़ डॉलर घटकर 470.73 अरब डॉलर रह गई.

मुंबई. देश के विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves/Forex Reserves) में फिर गिरावट आई है. 4 नवंबर, 2022 को खत्म हुए सप्ताह में यह 1.09 अरब डॉलर घटकर 529.99 अरब डॉलर रह गया. इसका कारण गोल्ड रिजर्व में आई भारी गिरावट है. भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई (RBI) की ओर से शुक्रवार को जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है.

रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले सप्ताह विदेशी मुद्रा भंडार 6.56 अरब डॉलर बढ़कर 531.08 अरब डॉलर हो गया था जो वर्ष के दौरान किसी एक सप्ताह में आई सबसे अधिक तेजी थी. एक साल पहले अक्टूबर, 2021 में देश का विदेश मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया था.

12 करोड़ डॉलर घटी एफसीए
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, देश के मुद्रा भंडार में गिरावट आने का मुख्य कारण यह है कि वैश्विक घटनाक्रमों की वजह से रुपये की गिरावट को थामने के लिए आरबीआई मुद्रा भंडार से मदद ले रहा है. रिजर्व बैंक द्वारा शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, 4 नवंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान मुद्रा भंडार का महत्वपूर्ण घटक मानी जाने वाली, फॉरेन करेंसी एसेट यानी एफसीए (FCA) 12 करोड़ डॉलर घटकर 470.73 अरब डॉलर रह गईं. डॉलर में बताई जाने वाली एफसीए में विदेशी मुद्रा भंडार में रखी यूरो, पाउंड और येन जैसी दूसरी विदेशी मुद्राओं के मूल्य में वृद्धि या कमी का प्रभाव भी शामिल होता है.

गोल्ड रिजर्व में 70.5 करोड़ डॉलर की गिरावट
आंकड़ों के अनुसार, रिपोर्टिंग वीक में गोल्ड रिजर्व का मूल्य 70.5 करोड़ डॉलर घटकर 37.057 अरब डॉलर रह गया. केंद्रीय बैंक ने कहा कि स्पेशल ड्राइंग राइट यानी एसडीआर (SDR) गिरावट की मुद्रा 23.5 करोड़ डॉलर घटकर 17.39 अरब डॉलर रह गया है. आंकड़ों के अनुसार रिपोर्टिंग वीक में, इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड यानी एमआईएफ (IMF) में रखा देश का मुद्रा भंडार भी 2.7 करोड़ डॉलर घटकर 4.82 अरब डॉलर रह गया.

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विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट मजबूत डॉलर से मूल्यांकन में बदलाव का नतीजा: सीतारमण

वाशिंगटन, 15 अक्टूबर (भाषा) वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की मुख्य वजह अमेरिकी डॉलर की मजबूती के कारण मूल्यांकन में बदलाव आना है। सीतारमण गिरावट की मुद्रा ने यहां अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक वित्त समिति (आईएमएफसी) को शुक्रवार को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 23 सितंबर 2022 तक 537.5 अरब डॉलर था जो अन्य समकक्ष अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बेहतर है। अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने से मूल्यांकन में आए बदलाव ने इस भंडार में आई गिरावट में दो-तिहाई योगदान दिया है।’’उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में विदेशी

सीतारमण ने यहां अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक वित्त समिति (आईएमएफसी) को शुक्रवार को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 23 सितंबर 2022 तक 537.5 अरब डॉलर था जो अन्य समकक्ष अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बेहतर है। अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने से मूल्यांकन में आए बदलाव ने इस भंडार में आई गिरावट में दो-तिहाई योगदान दिया है।’’

उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में विदेशी मुद्रा भंडार में 4.6 अरब डॉलर का भुगतान संतुलन (बीओपी) आधार पर संचयन हुआ है। अन्य बाहरी संकेतकों में शुद्ध अंतरराष्ट्रीय निवेश स्थिति और लघु अवधि का कर्ज भी कम संवेदनशीलता के सूचक हैं।

उन्होंने कहा कि इस स्थिति के बावजूद भारत का बाहरी कर्ज और जीडीपी का अनुपात प्रमुख उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कम है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार 30 सितंबर तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 4.854 अरब डॉलर की गिरावट के साथ 532.664 अरब डॉलर था। इस रिपोर्ट गिरावट की मुद्रा के मुताबिक कुल भंडार में प्रमुख हिस्सेदारी रखने वाले विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (एफसीए) में कमी आना ही 30 सितंबर को खत्म् हुए हफ्ते के दौरान भंडार में आई गिरावट की वजह है।

सीतारमण ने कहा कि आयातित उच्च मुद्रास्फीति के दबाव घरेलू स्तर पर मुद्रास्फीति के भावी पथ के लिए अब भी जोखिम बना हुआ है। इसमें अमेरिकी डॉलर के लगातार महंगे होते जाने की अहम भूमिका है।

उन्होंने कहा कि जनवरी 2022 से ही मुद्रास्फीति छह प्रतिशत के ऊपरी सहिष्णुता स्तर से ऊपर बनी हुई है।

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