मुद्रा अपस्फीति क्या है?

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मुद्रा अपस्फीति क्या है?

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यदि वस्तुओं और सेवाओं की आपूर् .

अतिस्फीति मुद्रा संकुचन अवमूल्यन मुद्रा-स्फीति

Solution : जब समग्र मूल्य स्तर घटता है ताकि मुद्रास्फीति की दर नकारात्मक हां जाए, तो इसे अपस्फीति कहा जाता है। यह मुद्रास्फीति के विपरीत है। ज्यादातर मामलों में मुद्रा अपस्फीति क्या है? धन की आपूर्ति में कमी या ऋण उपलब्धता अपस्फीति का कारण है। सरकार या व्यक्तियों द्वारा किए गए निवेश के खर्च में कमी भी इसका कारण बन सकता है।

मुद्रा अपस्फीति का अर्थ क्या होता है?

वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में लगातार कमी होते जाना मुद्रा अपस्फीति अथवा विस्फीति (Disinflation) कहलाता है, इसे ही मंदी कहते हैं। इस अवस्था में मुद्रा का मूल्य बढ़ जाता है, लेकिन सामान्य कीमत स्तर घट जाता है। ऐसा मुद्रा की पूर्ति की तुलना में वस्तुओं एवं सेवाओं के अनुत्पादन के कारण होता है।

मुद्रास्फीति पर नियंत्रण लाने हेतु जो प्रयास किए जाते हैं (जैसे साख नियंत्रण आदि), उनके परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति की दर घटने लगती है, कीमतों में मुद्रा अपस्फीति क्या है? गिरावट आती है तथा रोजगार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह स्थिति मुद्रा अपस्फीति अथवा विस्फीति की स्थिति कहलाती है। इस स्थिति में यद्यपि मूल्य स्तर गिरता है, तथापि यह सामान्य मूल्य स्तर से ऊपर ही रहता है।

डिफ्लेशन किसे कहते हैं और आपको इससे मुद्रा अपस्फीति क्या है? कैसे फर्क पड़ता है?

कुछ अरसा पहले आम लोग बढ़ती महंगाई दर से परेशान थे, अब डिफ्लेशन या अपस्फीति (शून्य से नीचे की महंगाई दर) का डर बन गया है। डिफ्लेशन का आपके लिए क्या मतलब है.

क्या है अपस्फीति (डिफ्लेशन)?

नकारात्मक दायरे में अस्थायी गिरावट को तुरंत अपस्फीति के तौर पर नहीं लिया जाता। अपस्फीति को लेकर कीमतों में अस्थायी गिरावट के साथ भ्रम नहीं पालना चाहिए। दरअसल, यह कीमतों में लगातार गिरावट आने की स्थिति है। यह तब आती है जब मुद्रास्फीति दर शून्य फीसदी से भी नीचे चली जाती है। अपस्फीति के माहौल में उत्पादों और सेवाओं के दाम गिरने जारी रहते हैं। इसलिए, उपभोक्ताओं के पास कीमतों और गिरावट आने तक खरीदारी और उपभोग के फैसले टालने का मौका होता है। बदले में इससे समूची आर्थिक गतिविधियों पर ब्रेक लगती है। अर्थव्यवस्था जिस तादाद में उत्पाद और सेवाएं खरीदना चाहती हैं और जिस कीमत पर खरीदना चाहती हैं, उन दोनों में गिरावट आती मुद्रा अपस्फीति क्या है? है। सब कुछ थम सा जाता है। ऐसे में निवेश में मुद्रा अपस्फीति क्या है? भी गिरावट आती है जिससे औसत मांग पर और ज्यादा चोट पड़ती है। अपस्फीति का एक और साइड इफेक्ट बेरोजगारी बढ़ने के रूप में सामने आता है क्योंकि अर्थव्यवस्था में मांग का स्तर काफी घट जाता है। रोजगार की कमी मांग को और कम करती है जिससे अपस्फीति को और तेजी मिलती है।

वैश्विक स्तर पर अपस्फीति बड़ी समस्या है क्योंकि निकट भविष्य में इसके आर्थिक असर देखने को मिलेंगे ही, साथ ही हाल तक अर्थशास्त्री लगातार अपस्फीति के बने रहने को बुनियादी रूप से नामुमकिन मान रहे थे।

अपस्फीति बढ़ाती है क्रय शक्ति

अपस्फीति से पैसे का असल मूल्य बढ़ता है। इससे लिक्विड एसेट और मुद्रा बचाने वाले और उसे अपने पास रखने वालों को काफी फायदा होता है क्योंकि वक्त बीतने के साथ-साथ लिक्विड एसेट और करेंसी की वास्तविक वैल्यू बढ़ती रहती है। दूसरी ओर यह उन निवेशकों की रकम में कमी करने का काम करती है जिन लोगों ने कम तरलता रखने वाले उत्पादों में पैसा लगाया है। साथ ही कर्जदारों को भी नुकसान होता है क्योंकि कम तरलता वाली संपत्तियों में लगाया गया पैसा वक्त बीतने के साथ-साथ कम होने लगता है। अपस्फीति के दौर में कर्ज भी बढ़ता है। कर्ज की अदायगी, क्रय शक्ति का बड़ा हिस्सा चट कर मुद्रा अपस्फीति क्या है? जाती है। जब कर्ज लिया था, उस दिन के मुकाबले अपस्फीति के मुद्रा अपस्फीति क्या है? दौरान उसे चुकाना भारी बोझ बन जाता है। अपस्फीति को आम तौर पर नकारात्मक करार दिया जाता है क्योंकि इसमें कम तरलता वाली संपत्तियों में निवेश करने वाले और कर्जदारों की जेब से मुद्रा अपस्फीति क्या है? पैसा उनके पास पहुंचता है जो लिक्विड एसेट और करेंसी को बचाकर रखने वाले हैं। वक्त बीतने के साथ ही पैसे की क्रय शक्ति भी बढ़ती है। हालांकि, यह उस वक्त बड़ी मुसीबत बन सकती है जब व्यक्ति विशेष की नेट वर्थ का बड़ा हिस्सा कम तरलता रखने वाली संपत्तियों में फंसा हो।

अपस्फीति से बाहर का रास्ता

कम से कम सिद्धांत रूप में तो अपस्फीति से बचा ही जा सकता है। सरकार को ज्यादा रुपए छापने होते हैं। ज्यादा मुद्रा छापने से सिस्टम में पैसा बढ़ जाता है और लोगों के पास खर्च के लिए ज्यादा रकम होती है।अपस्फीति से निपटने के लिए दूसरा हथियार है रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति। सरकारी बॉन्ड खरीदकर आरबीआई पैसे की आपूर्ति बढ़ा सकता है इससे मुद्रास्फीति दर को हवा मिलेगी। कीमतों में इजाफा किसी भी ठोस वापसी के लिए फायदे का काम करता है क्योंकि इससे मुनाफा बढ़ता है और हर तरह का दबाव कम होने लगता है।

इसलिए, रिजर्व बैंक की ओर से दरों में और कटौती हो सकती है और मौद्रिक नीति के मोर्चे पर राहत का इंतजाम किया जा सकता है। बाजारों पर 100 बेसिस अंकों की कमी का असर पहले ही देखा जा चुका है। मौद्रिक राहत पहुंचाने के लिए सरकार खुले बाजार से सरकारी बॉन्ड भी खरीद सकती है। निवेशकों के लिए इसका यह मतलब है कि 10-12 फीसदी की ऊंची डिपॉजिट दरों के दिन अब लद गए हैं और उन्हें डिपॉजिट तथा फिक्स्ड उत्पादों पर कम रिटर्न मिलेगा। फिक्स्ड डिपॉजिट और बॉन्ड में निवेश करने वाले निवेशक इन उत्पादों की वास्तविक कीमत अपस्फीति के दिनों में बढ़ती देखेंगे।

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