भारतीय वायु सेना ने बताया कि चार बचाव और राहत उड़ानें गुरुवार को भारत आईं. इनमें रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट, हंगरी के बुडापेस्ट और पोलैंड के रेजस्जॉ शहर से तीन उड़ानें 798 भारतीयों को लेकर दिल्ली पहुंचीं. वहीं, एयर इंडिया एक्सप्रेस की एक फ्लाइट बुखारेस्ट से 183 भारतीयों को लेकर मुंबई में लैंड हुई. इसकी तारीफ करने और तालियों से स्वागत किए जाने की जरूरत है.
सामूहिक अहंकार
यह बात दिमाग को झकझोर देती है. 35 वर्षीय एनआरआई के रूप में मैं विदेश में रहने के हमारे सामूहिक अहंकार पर हैरान हूं. यह ऐसा है, जैसे कि हम अपने वतन से बाहर आ गए हैं तो हमारा अभिषेक होना चाहिए और हमें विशेष कृपा मिलनी चाहिए. आप भारतीय हवाई अड्डों पर इससे रूबरू हो सकते हैं. अमेरिका के झुग्गी-झोपड़ी वाले घरों में रहने वाले घमंडी बच्चे यहां की कमियों पर नाक-भौं सिकोड़ते हैं. हम आइवी लीग से आते हैं. आपको पता नहीं है? ब्रिटेन में रहने वाले ऐसे भारतीय भीड़, बदबू और धक्कामुक्की विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं? पर नाराजगी जताते हैं.
खाड़ी देशों से काला चश्मा पहनकर आने वाले उपहार के रूप में चॉकलेट लाते हैं और वहां नहीं होने के अपराधबोध को दूर करने की कोशिश करते हैं. आंकड़े बताते हैं कि पासपोर्ट धारक करीब 30 मिलियन विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं? भारतीय विदेशों में रहते हैं और इनमें से किसी ने देश के फायदे के लिए अपना घर नहीं छोड़ा. हमने बेहतर व्यक्तिगत सौदे की तलाश में घर छोड़ दिया, चाहे वह हमारे लिए अच्छा हो या नहीं.
भारत माता के साथ रिश्ता
हकीकत में, इन सबके बावजूद, हमारे और मातृभूमि के बीच का संबंध खुद-ब-खुद बना रहता है और काफी मजबूत होता है. इससे कोई समस्या नहीं है. हम उसे ही चुनते हैं, जो हमें लगता है कि हमारे लिए सबसे अच्छा विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं? रहेगा. लेकिन मुश्किल आने का इंतजार क्यों करें? क्या उनके परिवारों को आने वाली मुसीबत नजर नहीं आई? क्या उन्हें ऐसे संकेत नहीं मिले, जिससे उन्हें पता लग जाए कि उनके विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं? बच्चों की जान खतरे में है. जब हवाई अड्डे खुले थे और उड़ानें जा रही थीं तो उन्होंने अपने बच्चों को पहले वापस क्यों नहीं बुलाया?
निश्चित रूप से अभिभावकों विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं? की भी जिम्मेदारी होती है, जिसे उन्हें तेजी से निभाना चाहिए विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं? था. आप खुद जोखिम लेते हैं और अपनी किस्मत आजमाते हुए कोई फैसला लेते हैं. उनमें से ज्यादातर ने ऐसा ही किया. वे वहां रुक गए. शुरुआती कुछ दिनों में तो उनके लिए यह सब रोमांच की तरह था. हालांकि, यह तब तक ही कायम रहा, जब तक वहां बमबारी शुरू नहीं हो गई और इसके बाद दहशत फैल गई. इस सामूहिक निकासी के दौरान नस्लवाद की कुछ घटनाएं भी सामने आईं. यह गौर करना होगा कि यूक्रेन के लिए हम सबसे प्रिय नहीं थे, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि उस देश पर हमला होना चाहिए. इस पूरे घटनाक्रम में कीव स्थित भारतीय दूतावास की तारीफ की जानी चाहिए कि कैसे उन्होंने बेहद कम कर्मचारी और ज्यादा महत्व वाली विदेशी सेवा नहीं होने के बावजूद बच्चों को बाहर निकालने में कामयाबी हासिल की.
रेस्क्यू का नेतृत्व
यूक्रेन संकट के दौरान अधिकांश देश असहाय नजर आए. लेकिन हमने इस तरह के मिशन का नेतृत्व किया और यह हमारे लिए अच्छा है. वास्तव में, सरकार को जो करना चाहिए था, वह था कि वहां सीधे IAF C17 को उतार देना चाहिए था. जंग के मैदान से जिंदगी बचाना ज्यादा अहम है, न कि फूड सर्विस देना. एक C17 अधिकतम 500 लोगों के साथ उड़ान भर सकता है. और ऐसा किया भी गया. गौर करने वाली बात यह है कि यह सैर-सपाटे के लिए निकली कोई क्रूज फ्लाइट नहीं है.
इसी तर्ज पर हम कुछ A380 भी चला सकते थे और ऑपरेशन गंगा में उन्हें शामिल कर सकते थे. उदाहरण के लिए अमीरात ने सहर्ष मदद की होती. ऐसे में खर्च पर नियंत्रण रखते हुए वे करीब 450 मुसाफिरों को एक साथ ले जा सकते थे. एक अहम मिशन में A380 की जगह 737 और A320 जैसे छोटे विमान भेजकर अच्छी नीयत के साथ ही लेकिन नासमझी दिखाई गई. बाद में C17 का इस्तेमाल बेहद उचित कदम था. नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बताया था कि लगभग 13 हजार भारतीय यूक्रेन में फंसे हुए हैं. इनमें से आधे अब अपने-अपने घर पहुंच चुके हैं.
विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं?
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तृणमूल कांग्रेस (TMC) की लोकसभा सदस्य महुआ मोइत्रा ने औद्योगिक उत्पादन पर सरकारी आंकड़ों का ही हवाला देते हुए आर्थिक प्रगति के दावों पर सरकार पर जोरदार हमला किया। कहा कि फरवरी में सरकार ने लोगों को विश्वास दिलाया था कि अर्थव्यवस्था बहुत अच्छा कर रही है। सभी को गैस सिलेंडर, आवास और बिजली जैसी सभी बुनियादी सुविधाएं मिल रही हैं। मोइत्रा ने इन दावों को “झूठ” कहा। बताया कि आठ महीने बाद अब दिसंबर में “जो सच्चाई सामने आई है, विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं? वह लंगड़ाती हुई इकोनॉमी बता रही है।”
उन्होंने कहा कि सरकार ने कहा है कि उसे बजट अनुमान के अलावा 3.26 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त धनराशि की जरूरत विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं? है। 2022-23 के लिए अतिरिक्त अनुदान (additional grants) की मांगों पर लोकसभा में चली बहस में मोइत्रा ने नरेंद्र मोदी सरकार पर भारत के विकास के बारे में “झूठ” फैलाने का आरोप लगाया। उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण करने की अपील की, जो टीएमसी के अनुसार नेता, पतन की ओर जा रहा है।
अक्षय तृतीया पर आपको इन तीन वजहों से खरीदना चाहिए सोना
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