पोर्टफोलियो चेक-अप
-स्मॉलकैप और मिडकैप फंडों में निवेश किया है. रिटर्न में अस्थिरता झेलने के लिए तैयार रहें.
-हर महीने 45,000 रुपये और निवेश कर सकते हैं.
-होम लोन को खत्म करने के लिए ईएमआई में 25,000 रुपये की बढ़ोतरी करें. इससे लोन की अवधि 15 साल के घटकर 6 साल रह जाएगी.
-मासिक सिप में हर साल 5 फीसदी की बढ़ोतरी करने पर शिक्षा के लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है.
-साल में एक बार फंड पोर्टफोलियो की समीक्षा जरूर करें. अगर फंड का प्रदर्शन अच्छा नहीं है तो उसमें से पैसा निकाल दूसरे में लगाएं.
-जब लक्ष्य करीब हो तो जोखिम को घटाएं ताकि लक्ष्य चूक न जाए.

Master (3)

Default Risk- डिफॉल्ट रिस्क

क्या होता है डिफॉल्ट रिस्क?
डिफॉल्ट रिस्क (Default Risk) वह जोखिम है जो एक लेंडर उस स्थिति में लेता है कि उधारकर्ता उनकी ऋण बाध्यताओं को पूरा करने में विफल हो जाएगा। लेंडर एवं निवेशकों के सामने वस्तुतः सभी प्रकार के ऋण देने में जोखिम का खतरा बना ही रहता है। उच्चतर स्तर के डिफॉल्ट रिस्क से अधिक अपेक्षित रिटर्न की स्थिति बनती है जिससे उच्चतर ब्याज दर की स्थिति पैदा होती है। एक फ्री कैश फ्लो राशि जो शून्य या नकारात्मक होने के निकट है, उच्चतर डिफॉल्ट रिस्क का संकेत दे सकती है। डिफॉल्ट रिस्क का अनुमान कॉरपोरेट और सरकारी डेट इश्यू के लिए उपभोक्ता क्रेडिट और क्रेडिट रेटिंग्स के लिए एफआईसीओ स्कोर के उपयोग द्वारा लगाया जा सकता है।

डिफॉल्ट रिस्क से जुड़ी मुख्य बातें
जब कभी कोई लेंडर किसी उधारकर्ता को कोई ऋण देता है तो इसकी आशंका रहती है कि लोन की राशि का भुगतान नहीं भी हो सकता है। निवेश से जुड़े जोखिम पर नजर जो माप इस संभाव्यता पर नजर रखती है, वह है डिफॉल्ट रिस्क। डिफॉल्ट रिस्क केवल व्यक्ति विशेषों पर ही लागू नहीं होता जो पैसे उधार लेते हैं बल्कि उन कंपनियों पर भी लागू होता है जो बॉन्ड जारी करती हैं और वित्तीय सीमाओं के कारण उन बॉन्डों पर ब्याज का भुगतान नहीं कर पातीं। जब कभी कोई लेंडर ऋण देता है तो उधारकर्ता के डिफॉल्ट रिस्क की गणना करना उसकी जोखिम प्रबंधन रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। जब कभी कोई निवेशक किसी कंपनी की वित्तीय सेहत का निर्धारण करते हुए किसी निवेश का मूल्यांकन करता है तो निवेश जोखिम का मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण हो जाता है। डिफ़ॉल्ट रिस्क व्यापक आर्थिक बदलावों के परिणामस्वरूप परिवर्तित हो सकता है।

सिर्फ निवेश करना काफी नहीं, उसके प्रदर्शन पर भी रखें नजर

portfolio doctor

CASE 1 : अशुतोष झा और उनकी पत्नी बच्चों की शिक्षा, उनकी शादी और अपने रिटायरमेंट के लिए बचत कर रहे हैं. आइए, देखते हैं कि डॉक्टर ने उन्हें क्या सलाह दी है.

लक्ष्य

Master

Master (1)

पोर्टफोलियो चेक-अप
-स्मॉलकैप, मिडकैप और ईएलएसएस फंडों में मिला-जुलाकर निवेश किया है.
-पोर्टफोलियो में केवल चार फंड हैं. सभी अच्छा कर रहे हैं.
-सिप में सालाना 5 फीसदी की बढ़ोतरी से बच्चों से जुड़े लक्ष्य पाने में मदद मिलेगी.
-आशुतोष झा 50 साल में रिटायर होना चाहते हैं. उन्हें इस लक्ष्य को 5 साल के लिए बढ़ाना होगा.
-रिटायरमेंट के लिए सिप को बढ़ाना होगा. हर साल इसमें 10 फीसदी की बढ़ोतरी करनी होगी.

Mutual Funds में लगाने जा रहे हैं पैसे! निवेश पर रिटर्न तो मिल सकता है तगड़ा, रिस्क पर गौर किया क्या? यहां समझ लें

Linkedin

Mutual Funds investment Risk: म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) निवेश का एक शानदार जरिया है. इसमें परंपरागत निवेश विकल्पों के मुकाबले रिटर्न भी ज्यादा मिलता है. आप एकमुश्त भी इसमें निवेश कर सकते हैं और चाहें तो एसआईपी के जरिये हर महीने एक तय छोटी रकम के साथ भी निवेश की शुरुआत कर सकते हैं. लेकिन लोग म्यूचुअल फंड में निवेश पर रिटर्न की तो बात करते हैं, लेकिन रिस्क (Mutual Funds Risk) किस तरह के हैं, इस पर ज्यादा गौर नहीं करते. हालांकि जानकारों का कहना है कि म्यूचुअल फंड में निवेश में शेयर मार्केट के मुकाबले कम है, लेकिन है जरूर.

शेयर बाजार से मोटी कमाई करने के लिए उठा सकते हैं विदेशी निवेश का फायदा, कम र‍िस्‍क में ज्‍यादा रिटर्न का मौका

शेयर बाजार से मोटी कमाई करने के लिए उठा सकते हैं विदेशी निवेश का फायदा, कम र‍िस्‍क में ज्‍यादा रिटर्न का मौका

भारत दुनियाभर में सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से एक है. लेकिन इसके बावजूद भी दुनियाभर के इक्विटी बाजार में भारत की हिस्‍सेदारी महज 3 फीसदी ही है. इसका मतलब है कि अभी भी वैश्विक स्‍तर पर भारत में इक्विटी बाजार की भरपूर संभावनाएं हैं. भारतीय निवेशकों के पास दो विकल्‍प है. पहला तो यह कि वैश्विक अवसरों का लाभ उठाया जा सकता है और दूसरा यह कि भारत से बाहर भी निवेश कर अपने पोर्टफोलिया में विविधता लाई जा सकती है. वैश्विक बाजार में निवेश करने के लिए निवेशकों के पास कई वजहें हो सकती है. वे किसी एक देश या कई देश में निवेश कर सकते हैं. इसके अलावा उनके पास किसी खास सेक्‍टर या किसी उभरते थीम में निवेश कर सकते हैं. कुछ ऐसे विकल्‍प भी होंगे, जिसमें अब तक भारत बाजार का एक्‍सपोजर न रहा हो.

वैश्विक बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपये के प्रदर्शन का फायदा उठाने का मौका

वास्तव में यदि हम बेंचमार्क सूचकांकों की तुलना करें तो अमेरिकी बाजारों ने भारतीय बाजारों के मुकाबले पिछले 3, 5 और 10 साल में अपनी स्थानीय मुद्रा में निवेशकों के लिए ज्यादा वेल्‍थ क्रिएशन किया है. रुपये के मद में भी उनका रिटर्न ज्यादा रहा है. यहां निवेशकों को यह बात ध्यान में रखनी होगी कि लॉन्ग टर्म में रुपये की गिरावट और अमेरिकी डॉलर जैसी करेंसी में मजबूती से रिटर्न और बढ़ता है, तथा इसका उलटा भी हो सकता है. इसलिए यदि निवेशकों के अपने जोखिम प्रोफाइल के हिसाब से फिट बैठता है तो उन्हें घर का मोह छोड़कर ऐसे अवसरों के दोहन का मौका नहीं छोड़ना चाहिए.

अब इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्र आपको निवेश के अलग-अलग अवसर प्रदान करते हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था अब भी काफी हद तक आईटी कंसल्टेंसी, बीएफएसआई, तेल एवं गैस जैसे परंपरागत सेक्टर के नेतृत्व में आगे बढ़ रही है, जबकि वैश्विक स्तर पर ऐसे टेक्नोलॉजी आधारित फर्मों पर जोर है जो विविध तरह के ऐसे मेगा ट्रेंड का हिस्सा हैं, जो कि अपनी स्वभाव के हिसाब से निवेश से जुड़े जोखिम पर नजर हलचल पैदा करने वाले हैं और काम करने के तरीकों को ही बदल रहे हैं.

दूसरे बाजारों में इक्विटी फंड के लिए बेंचमार्क से बेहतर प्रदर्शन करना मुश्किल

अमेरिका जैसे विकसित देशों में वित्तीय बाजार सूचना के लिहाज से काफी सक्षम हैं, जिसकी वजह से इक्विटी फंड के लिए बेंचमार्क इंडेक्स के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करना कठिन होता है. उदाहरण के लिए अमेरिका पर आधारित साल 2020 की SPIVA की रिपोर्ट के अनुसार, लगातार 11वें साल इक्विटी लार्ज कैप फंड का प्रदर्शन व्यापक सूचकांकों जैसे SP 500 के मुकाबले औसतन कमतर ही रहा है. यहां तक कि फीडर फंडों में, जो कि एक्टिव फंडों में निवेश करते हैं, बेंचमार्क इंडेक्स के मुकाबले कमतर प्रदर्शन के जोखिम के साथ ही लागत ज्यादा होती है.

ईटीएफ या ईटीएफ आधारित फंड ऑफ फंड जैसे पैसिव उत्पाद जो कि किसी इंडेक्स के प्रदर्शन पर नजर रखते हैं, संभवत: निवेश के लिए ज्यादा उपयुक्त हो सकते हैं, क्योंकि उनमें लागत कम होती है और ज्ञात मेथडोलॉजी के साथ उनका पोर्टफोलियो पारदर्शी होता है.

रिस्‍क और निवेश के लक्ष्‍य के आधार पर चुनें पैसा लगाना

विदेशी बाजारों निवेश से जुड़े जोखिम पर नजर निवेश से जुड़े जोखिम पर नजर में निवेश के अवसर तलाशने के लिए निवेशकों को सबसे पहले अपने जोखिम प्रोफाइल और निवेश लक्ष्य से वाकिफ होना चाहिए. ऐसा फंड चुनें जो कि आपकी प्रोफाइल और लक्ष्य से मेल खाता हो और इसमें लागत को भी ध्यान में रखना होगा. आदर्श रूप में निवेशक पहले छोटे आवंटन (उदाहरण के लिए 5 फीसदी से) शुरुआत कर सकता है और इसके बाद आगे चलकर धीरे-धीरे अपने आवंटन को बढ़ा सकता है, निवेश से जुड़े जोखिम पर नजर यदि उपयुक्त लगता हो तो.

एक्टिव म्यूचुअल फंड्स में बहुत तरह के विकल्पों की उपलब्धता को देखते हुए और ईटीएफ जैसे लागत के हिसाब से किफायती पैसिव उत्पादों की वजह से ऐसा निवेश अब पहले की तुलना में काफी आसान हो गया है.

इस आर्टिकल के लेखक मिरे एसेट इन्‍वेस्‍टमेंअ मैनेजर्स के ईटीएफ-प्रोडक्‍ट हेड सिद्धार्थ श्रीवास्तव हैं.

रिस्‍क से सुरक्षा, रिटर्न बेहतर

एनवायरमेंटल, सोशल और कॉरपोरेट गवर्नेंस के मामले में मजबूत कंपनियों में निवेश से आर्थिक संकट के दौरान जोखिम से सुरक्षा मिलती है. वहीं ये कंपनियां रिटर्न के मामले में एनवायरमेंटल, सोशल और कॉरपोरेट गवर्नेंस में कमजोर कंपनियों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करती हैं.

Financial Planning for 2023 : नए साल के लिए करनी है बेहतर फाइनेंशियल प्लानिंग, तो 2022 में सीखी इन 6 बातों का रखें ध्यान

Pension Plans: रिटायरमेंट के बाद रेगुलर इनकम, बुढ़ापे में भी रुपये पैसे की नहीं होगी दिक्‍कत, पेंशन प्लान के समझें फायदे

म्‍यूचुअल फंड्स का भी ESG थीम पर भरोसा

जहां तक निवेशकों की बात है जब वे कॉर्पोरेट प्रदर्शन और जोखिम का आकलन करते हैं, तो उनकी ओर से स्‍टेबल, रिस्‍पांसिबल और एथिकल प्रैक्टिस को कंसीडर किया जाता है. वहीं अब एसेट मैनेजमेंट कंपनियों को भी ESG थीम पसंद आ रही है. एसेट मैनेजमेंट कंपनियां ऐसी कंपनियों में सक्रिय निवेशकों के रूप में भूमिका निभा रही हैं.

बैंकों के साथ ही नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल सेक्‍टर के लिए ESG थीम महत्‍वपूर्ण है. क्‍योंकि उनकी क्रेडिट मूल्यांकन में ESG से जुड़े जोखिम को ध्यान में रखना जरूरी होता जा रहा है. ऐसा इसलिए है जिससे रिस्‍क कम निवेश से जुड़े जोखिम पर नजर किया जा सके और सही वैल्‍यू तय हो सके. साथ ही लोन एग्रीमेंट और टेन्‍योर को बेहतर तरीके से लागू किया जा सके.

ESG अपनाने से कंपनियों को भी फायदा

ESG का कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन के साथ सकारात्मक संबंध है. इन सिद्धांतों को अपनाने से कॉर्पोरेट ग्रोथ बेहतर होती है. क्‍योंकि इसका फायदा यह है कि इसके जरिए सही संधाधनों के इस्‍तेमाल से टॉपलाइन ग्रोथ को बढ़ावा मिलता है और कम लागत पर पूंजी जुटाने में मदद मिलती है.

वहीं इससे कंपनी की इमेज बेहतर करने में मदद मिलती है. वहीं निवेशकों का फोकस भी ऐसी कंप‍नियों पर बढ़ जाता है. ऐसा देखा गया है कि ईएसजी से संबंधित निगेटिव खबरें किसी कंपनी के शेयर के रिटर्न को बिगाड़ सकती हैं. इसी वजह से भारत सहित दुनिया की तमाम कंपनियां तेजी से ESG मेट्रिक्स की रिपोर्ट कर रही हैं.

फाइनेंशियल सिस्‍टम मजबूत करने में मदद

ESG थीम से वित्तीय प्रणाली (NGFS) और बैंकिंग नेटवर्क (SBN) को मजबूत करने में मदद मिल रही है. हाल फिलहाल में ग्रीन फाइनेंस पर भारत की पहल मजबूत हुई है.

भले ही निवेशकों का एक बड़ा वर्ग ESG मूल्यांकन के प्रारंभिक चरण में हैं, अधिकांश बड़े वैश्विक संस्थागत निवेशकों के पास अच्छी तरह से डिफाइन ESG पॉलिसी हैं. कई म्‍यूचुअल फंड ने ESG थीम को अपनाया है.

हाल फिलहाल में जो स्‍ट्रैटेजी अपनाई गई है उनमें कहा गया है कि ऐसी कंपनियों में निवेश सेबचना चाहिए, जो ESG पैरामीटर में खराब स्‍कोर करती हैं. इसी वजह से स्‍मार्ट निवेशक ESG बेस्‍ड निवेश पर फोकस कर रहे हैं.

(लेखक- राहुल प्रिथियानी , सीनियर डायरेक्टर-सस्टेनेबिलिटी, एनर्जी एंड कमोडिटीज, क्रिसिल)

Get Business News in Hindi, latest India News in Hindi, and other breaking news on share market, investment scheme and much more on Financial Express Hindi. Like us on Facebook, Follow us on Twitter for latest financial news and share market updates.

रेटिंग: 4.24
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 588