गीता प्रबंध -अरविन्द पृ. 6

कारण, ये केवल दार्शनिक बुद्धि की कल्पना की चमक या चकित करने वाली युक्ति नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव के चिरस्थायी सत्य हैं, ये हमारी उच्चतम आध्यात्मिक संभावनाओं के प्रमाणयोग्य तथ्य है, और जो कोई इस जगत् के रहस्य को तहतक पहुंचाना चाहता है वह इनकी उपेक्षा कदापि नहीं कर सकता। इसकी विवेचन-पद्धति कुछ भी तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू हो, इसका हेतु खास दार्शनिक मत का समर्थन करना या किसी विशिष्ट योग की पुष्टि करना नहीं है, जैसा कि भाष्यकार प्रमाणित करने की चेष्टा करते हैं। गीता की भाषा, तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू इसके विचारों की रचना, विविध भावनाओं का इसमें संयोग और उनका संतुलन ये सब बातें ऐसी हैं कि जो किसी सांप्रदायिक आचार्य के मिजाज में नहीं हुआ करतीं, न एक-एक पद को कसौटी पर कसकर देखने वाली नैयायिक बुद्धि में ही आया करती हैं, क्योंकि उसे तो सत्य के किसी एक पहलू को ग्रहण कर बाकी सबको छांटकर अलग कर देने की पड़ी रहती है। परंतु गीता की विचारधारा व्यापक है, उसकी गति तरंगों की तरह चढ़ाव-उतारवाली और नानाविध भावों का आलिंगन करने वाली है जो किसी विशाल समन्वयात्मक बुद्धि और सुसंपन्न समन्वयात्मक अनुभूति का प्रत्यक्ष प्रमाण है। यह उन महान् समन्वयों में से है जिनकी सृष्टि करने में भारत की अध्यात्मिकता उतनी ही समृद्ध है जितनी कि वह ज्ञान की अत्यंत प्रगाढ़ और अनन्यसाधारण क्रियाओं तथा धार्मिक साक्षात्कारों की सृष्टि करने में समृद्ध है, जो किसी एक ही साधन सूत्र पर केंद्रित होते हैं और एक ही मार्ग की पराकाष्ठा तक पहुंचते हैं ।
गीता की यह विचार धारा एक दूसरे को अलग करने वाली और एक करने वाली है। गीता का सिद्धांत केवल अद्वैत नहीं है यद्यपि इसके मत से एक ही अव्यय, विशुद्ध, सनातन आत्मतत्व अखिल ब्रह्मंड की स्थिति का आश्रय है; गीता का सिद्धांत मायावाद भी नहीं है यद्यपि इसके मत से सृष्ट जगत् में त्रिगुणात्मिका प्रकृति के माया सर्वत्र फैली हुई है; गीता का सिद्धांत विशिष्टाद्वैत भी नहीं है यद्यपि इसके मत से उसी पर एकमेवाद्वितीय परब्रह्म में लय नहीं, बल्कि निवास ही आध्यात्मिक चेतना की परा स्थिति है; गीता का सिद्धांत सांख्य भी नहीं यद्यपि इसके मत से यह सृष्ट जगत् प्रकृति-पुरुष के संयोग से ही बना है; गीता का सिद्धांत वैष्णवों का ईश्वरवाद भी नहीं है यद्यपि पुराणों के प्रतिपाद्य श्रीविष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ही इसके परमाराध्य देवाधिदेव हैं और इनमें और अनिर्देश्य निर्विशेष ब्रह्म मे कोई तात्विक भेद नहीं है, न ब्रह्म का दर्जा किसी प्रकार से भी इन प्राणिनां ईश्वरः से ऊंचा ही है। गीता के पूर्व उपनिषदों में जैसा समन्वय हुआ है जो आध्यात्मिक होने के साथ-साथ बौद्धिक भी है और इसलिये इसमें ऐसा अनुदार सिद्धांत नहीं आने पाता जो इसकी सार्वलौकिक व्यापकता में बाधक हो। वेदांत के सबसे अधिक प्रामाणिक तीन ग्रंथों में से एक होने के कारण वाद-विवाद भाष्यकारों ने इस ग्रंथ का उपयोग स्वमत के मंडन तथा अन्य मतों और संप्रदायो के खंडन में ढाल और तलवार के तौर पर क्रिया है; परंतु गीता का हेतु यहा नहीं है; गीता का उद्देश्य ठीक इसके विपरीत है।

ऊष्मागतिकी के नियम

ऊष्मा की एक उपशाखा अणुगति सिद्धांत (Kinetic Theory) है। इस सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमात्र लघु अणुओं के द्वारा निर्मित हैं। गैसों के संबंध में यह बहुत महत्वपूर्ण विज्ञान है और इसके उपयोग का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। विशेष रूप से इंजीनियरिंग तथा शिल्पविज्ञान में इसका बहुत महत्व है।

केंद्रीय विवि में आइंस्टीन के सिद्घांत पर चर्चा करेंगे शोधकर्ता

Workshop in central university of himachal pradesh

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला में (जीटीआर) जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी सिद्धांत के पर देश-विदेश में शोधकर्ता चर्चा करेंगे। इसके लिए सीयू धर्मशाला के शाहपुर स्थित अस्थायी शैक्षणिक परिसर में सोमवार से विशेष कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। इसमें देश-विदेश से करीब 30 शोधकर्ता भाग लेंगे, जबकि इस विषय के नौ वैज्ञानिक भी कार्यशाला में भाग ले रहे हैं।

सीयू के भौतिक और खगोल शास्त्र विभाग की आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी सोमवार से शुरू होगी, जबकि इसका समापन 12 मार्च को होगा। आयुका (इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर अस्ट्रॉनोमी एडं अस्ट्रोफिजिक्स) और विज्ञान एवं तकनीकी विभाग भारत सरकार के सहयोग से हो रही इस संगोष्ठी में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की ब्रह्मांड की उत्पत्ति और संरचना को समझने में उपयोगी जीटीआर सिद्धांत पर मुख्य रूप से चर्चा होगी।

इसके माध्यम से ही हाल ही में गुरुत्वाकर्षण बल की तर्ज पर गुरुत्व तरंग की खोज अमेरिका में हुई है। गुरुत्व तरंग पर शोधकर्ता अपने शोध पढ़ेंगे। संगोष्ठी के आयोजक सीयूएचपी के डॉ. भाग चंद चौहान और आयुका के प्रो तरुण सौरादीप ने बताया कि वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी सिद्धांत करीब सौ वर्ष पहले खोजा था।

लेकिन इस सिद्धांत पर कम काम हो पाया। लेकिन 1960 और 1970 के दशक में थ्योरेटिकल फिजिक्स, ब्लैक हॉल और एस्ट्रोफिजिक्स के स्वर्णिम युग के नाम से जाना जाता है। क्योंकि इस दशक में जीटीआर पर बहुत से शोध हुए। इससे जीटीआर थ्योरेटिकल फिजिक्स का केंद्र बिंदु बन गया।

वर्तमान में ब्रह्मांड की उत्पत्ति और संरचना को समझने के लिए जीटीआर का बहुत योगदान है। विश्व में इस पर बहुत से शोध हुए हैं। लेकिन भारत में इस विषय पर बहुत कम काम हुआ है। इसलिए सीयू धर्मशाला में जीटीआर पर संगोष्ठी का आयोजित की जा रही है।

नैक टीम करेगी ऊना कॉलेज का निरीक्षण- राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) की टीम ऊना कॉलेज में 28 मार्च से 30 मार्च तक निरीक्षण करेगी। यह जानकारी प्राचार्य डा. एसके चावला ने दी। उन्होंने बताया कि नैक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का स्वायत संस्था है।

टीम में तीन सदस्य शामिल हैं। रिपोर्ट के आधार पर महाविद्यालय को ग्रेड दिए जाएंगे और कालेज को आगामी पांच वर्षों के लिए ग्रांट प्राप्त होगी। उन्होंने बताया कि इसके लिए तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू महाविद्यालय में प्रो. सुरेंद्र अत्री पर आधारित टीम भी तैयार की गई है।

नैक टीम महाविद्यालय तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू में विभिन्न पहलुओं की गहनता से जांच करेगी, जिसमें पाठ्यक्रम पहलू शामिल हैं, जिसमें प्रारूप, विकास, कार्यान्वयन शामिल हैं। प्रशासन, नेतृत्व और प्रबंधन, जिसमें आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रणाली की जांच शामिल है। डा. एसके चावला ने बताया कि इन्हीं के आधार पर यह टीम महाविद्यालय को ग्रेड प्रदान करेगी।

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला में (जीटीआर) जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी सिद्धांत के पर देश-विदेश में शोधकर्ता चर्चा करेंगे। इसके लिए सीयू धर्मशाला के शाहपुर स्थित अस्थायी शैक्षणिक परिसर में सोमवार से विशेष कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। इसमें देश-विदेश से तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू करीब 30 शोधकर्ता भाग लेंगे, जबकि इस विषय के नौ वैज्ञानिक भी कार्यशाला में भाग ले रहे हैं।

सीयू के भौतिक और खगोल शास्त्र विभाग की आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी सोमवार से शुरू होगी, जबकि इसका समापन 12 मार्च को होगा। आयुका (इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर अस्ट्रॉनोमी एडं अस्ट्रोफिजिक्स) और विज्ञान एवं तकनीकी विभाग भारत सरकार के सहयोग से हो रही इस संगोष्ठी में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की ब्रह्मांड की उत्पत्ति और संरचना को समझने में उपयोगी जीटीआर सिद्धांत पर मुख्य रूप से चर्चा होगी।

इसके माध्यम से ही हाल ही में गुरुत्वाकर्षण बल की तर्ज पर गुरुत्व तरंग की खोज अमेरिका में हुई है। गुरुत्व तरंग पर शोधकर्ता अपने शोध पढ़ेंगे। संगोष्ठी के आयोजक सीयूएचपी के डॉ. भाग चंद चौहान और आयुका के प्रो तरुण सौरादीप ने बताया कि वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने जनरल थ्योरी ऑफ तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू रिलेटिविटी सिद्धांत करीब सौ वर्ष पहले खोजा था।

लेकिन इस सिद्धांत पर कम काम हो पाया। लेकिन 1960 और 1970 के दशक में थ्योरेटिकल फिजिक्स, ब्लैक हॉल और एस्ट्रोफिजिक्स के स्वर्णिम युग के नाम से जाना जाता है। क्योंकि इस दशक में जीटीआर पर बहुत से शोध हुए। इससे जीटीआर थ्योरेटिकल फिजिक्स का केंद्र बिंदु बन गया।


वर्तमान में ब्रह्मांड की उत्पत्ति और संरचना को समझने के लिए जीटीआर का बहुत योगदान है। विश्व में इस पर बहुत से शोध हुए हैं। लेकिन भारत में इस विषय पर बहुत कम काम हुआ है। इसलिए सीयू धर्मशाला में जीटीआर पर संगोष्ठी का आयोजित की जा रही है।

नैक टीम करेगी ऊना कॉलेज का निरीक्षण- राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) की टीम ऊना कॉलेज में 28 मार्च से 30 मार्च तक निरीक्षण करेगी। यह जानकारी प्राचार्य डा. एसके चावला ने दी। उन्होंने बताया कि नैक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का स्वायत संस्था है।

टीम में तीन सदस्य शामिल हैं। रिपोर्ट के आधार पर महाविद्यालय को ग्रेड दिए जाएंगे और कालेज को आगामी पांच वर्षों के लिए ग्रांट प्राप्त होगी। उन्होंने बताया कि इसके लिए महाविद्यालय में प्रो. सुरेंद्र अत्री पर आधारित टीम भी तैयार की गई है।

नैक टीम महाविद्यालय में विभिन्न पहलुओं की गहनता से जांच करेगी, जिसमें पाठ्यक्रम पहलू शामिल हैं, जिसमें प्रारूप, विकास, कार्यान्वयन शामिल हैं। प्रशासन, नेतृत्व और प्रबंधन, जिसमें आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रणाली की जांच शामिल है। डा. एसके चावला ने बताया कि इन्हीं के आधार पर यह टीम महाविद्यालय को ग्रेड प्रदान करेगी।

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तरंग - समानार्थी।, विलोम शब्द।, अर्थ, उदाहरण

तरंग (Wave) का अर्थ होता है - 'लहर'। भौतिकी में तरंग का अभिप्राय अधिक व्यापक होता है जहां यह कई प्रकार के कंपन या दोलन को व्यक्त करता है। इसके अन्तर्गत यांत्रिक, विद्युतचुम्बकीय, ऊष्मीय इत्यादि कई प्रकार की तरंग-गति का अध्ययन किया जाता है।

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